तुम्हे सौंपता हूँ
फूल मेरे जीवन में आ रहे हैं
सौरभ से दसों दिशाएँ
भरी हुई हैं
मेरी जी विह्वल है
मैं किससे क्या कहूँ
आओ
अच्छे आए समीर
जरा ठहरो
फूल जो पसंद हों, उतार लो
शाखाएँ, टहनियाँ
हिलाओ, झकझोरो
जिन्हें गिरना हो गिर जायँ
जायँ जायँ
पत्र-पुष्प जितने भी चाहो
अभी ले जाओ
जिसे चाहो, उसे दो
लो
जो भी चाहे लो
एक अनुरोध मेरा मान लो
सुरभि हमारी यह
हमें बड़ी प्यारी है
इसको सँभालकर जहाँ जाना
ले जाना
इसे
तुम्हें सौंपता हूँ।
( स्क्रिप्ट राइटर,गंगा यात्री निलय उपाध्याय )