मेघनाद कहुं पुनि हँकरावा।
और
दीन्ही सिख, बल बयरु बढ़ावा।।
ये है निसाचरी वृत्ति जो अपने संतान को जो वैर भाव की शिक्षा देते हैं।
एक तो इस प्रकार के अत्याचार हेतु मंत्रणा के लिए एकत्रित सभा में मेघनाद आया नहीं था इसलिए आवाज दिलाकर बुलाया –
मेघनाद कहुं पुनि हँकरावा
हँकरावा (बुलवाया),
नहीं बल्कि
पुनि हँकरावा।
और जब मेघनाद पिता के पास पहुंचा तो रावण ने कैसी शिक्षा दी?
दीन्ही सिख,
ऐसी शिक्षा दिया जिससे वैरभाव बढ़ता है (बल बयरु बढ़ावा)।।
और जब रावण ने मेघनाद को आज्ञा दिया कि जो जो देवता युद्ध में धीर वीर हैं उन्हें पराजित करो और उन्हें बांध कर मेरे पास लाओ। तो मेघनाद देवताओं को पराजित करने को तो तैयार हो गया किन्तु पराजय स्वीकार करने वाले को बांधकर अपमानित करते हुए लाने को तैयार नहीं दिखता है इसलिए रावण मेघनाद के पितृभक्ति के आन देकर मेघनाद को बाध्य किया (उठि सुत पितु अनुसासन कांधी।)
तात्पर्य ये कि स्वार्थी पिता एक तो अपने संतान को प्रेम-भाव बढ़ाने के नहीं बल्कि वैर भाव बढ़ाने की शिक्षा देते हैं और कभी कभी तो गलत करने को बाध्य भी करते हैं।
तो परिणाम क्या हुआ?
रहा न कोउ कुल रोवनिहारा
स्वयं तो गया पर पूरे वंश को भी बर्बाद कर दिया कि नहीं?
इसलिए
धर्म मार्ग चरित्रेण
इस प्रसंग से हमें शिक्षा मिलती है कि संतान को कभी वैर भाव बढ़ाने वाली शिक्षा नहीं देना चाहिए….
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सीताराम जय सीताराम
( संकलन: पंडित भानू प्रताप चतुर्वेदी)