श्री गुरु तेगबहादुर जी कहते हैं-
हरि जसु रे मना गाइ लै जो संगी है तेरो।
अउसरु बीतिओ जातु है कहिओ मान लै मेरो।।
(गुरवाणी- ७२७)
इसलिए महापुरुष कहते हैं-
जब लगु जरा रोगु नहीं आइआ।। जब लगु कालि ग्रसी नहीं काइआ।।
जब लगु बिकल भई नहीं बानी।। भजि लेहि रे मन सारिगपानी।।
(गुरवाणी- ११५९)
जब तक वृद्धावस्था नहीं आई, तब तक तू काल से बचा हुआ है और जब तक तेरी बोलने की शक्ति कायम हैं, तू परमात्मा की भक्ति कर। इस बात को कोई नहीं जानता कि कब तुझे मृत्यु झपट ले जाए? इसलिए जितना शीघ्र हो सके, हमें परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए क्योंकि प्रभु को जानकर ही उसकी भक्ति की जा सकती हैं। जब हम उस परमात्मा को जान लेंगे तो सारी अज्ञानता स्वतः ही समाप्त हो जाएगी। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है-
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जाने। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें।।
जेहि जानें जग जाइ हेराई। जागें जथा सपन भ्रम जाई।।
(रा. च. मा. बालकाण्ड)
जिसको जाने बिना झूठ भी सत्य ही भासता है, जैसे बिना प्रकाश के रस्सी भी सर्प प्रतीत होती हैं। जिस सत्य को जान लेने पर संसार उसी तरह समाप्त हो जाता है, जैसे जाग जाने पर स्वप्न का भ्रम दूर हो जाता है। जैसे मृग को मरुस्थल में जल का भ्रम हो जाता है, उसी तरह अज्ञानी व्यक्ति को यह संसार सत्य ही दिखाई देता है। जैसे किसी अनपढ व्यक्ति को कोई यह कहे कि आकाश का कोई रंग नहीं तो वह कभी भी मानने को तैयार नहीं होगा परन्तु एक वैज्ञानिक यह जानता है कि बहुत सी गैसो के कारण आकाश नीला प्रतीत होता है, वास्तव में आकाश का कोई भी रंग नहीं है। इसी तरह यह संसार परमात्मा की माया द्वारा रची हुई लीला हैं।
( संकलन: जीवन एक यात्रा )