नर हो नारी हो या सोमरस का खिलाड़ी हो लगभग सभी ने बोतल और कमर को हिला कर नया साल को बुला ही लिया है! वैसे भी पिछला साल कोई बीता हुआ साल न लगकर गांव का पट्टीदार ज्यादा लग रहा है! हर कोई उस पर चढ़ने की कोशिश में लगा हुआ है।लेकिन लोग यह भूल जा रहे हैं कि जब उसने चढ़ाई कि थी तो कलयुग में सतयुग की वापसी हो गई थी।
कोरोना ने पूंजीवाद में समाजवादी पगडंडी निकाल दी थी।लोग डकार रहे थे लेकिन कुछ साझा भी कर रहे थे!असंख्य भूखी आंखों से लोगों ने सभ्यता के विकास को समझा था।लोगों को समझ मे आया कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम कोई राजनीतिक एजेंडा नही यद्यपि हमारे जीवन जीने का मूलभूत फण्डा है।
कम खाना गम खाना भारत के सड़को से लेकर गांव-नगर हर जगह की स्थापित मान्यता हो चुकी थी।लोगों को समझ मे आया कि सामुदायिक जीवन कितना जरूरी है!प्यार और नफरत एक ही गली में घूम रहे हैं लेकिन दो हज़ार बीस यह सब सिखाकर खुद पीछे जा चुका और हम अभी भी तब्दीली जमात का हिस्सा नही बन सके हैं!
मेरा तो हर साल के अंत मे मुंह ही लटक जाता है।हर बार समय निकालकर अपने रोजनामचा को देखता हूं तो लगता है कि कुछ हासिल ही नही रहा! ना ढंग से किताब ही पढ़ पाया,ना कहीं घूम पाया,ना तो किसी अपने से मिल पाया और ना ही मूंछ लहरा सकने वाला कोई कार्य ही कर पाया!
समय और हम दोनों एक दूसरे को काट रहे हैं, जिसकी धार तेज होगी वह ही बच पाएगा।हर बार यही समझ मे आता है कि छोटे प्रयास में बड़ी सफलता छुपी है! लेकिन वह प्रयास.. अंत मे बगल वाले शर्मा अंकल का लड़का लेकर निकल जाता है!
खैर कोशिश की जाएगी २०२१ को भी देख-दाख कर निकाल दिया जाए।मेहनतकश लोगों को काम मुबारक बाकि को आम मुबारक ! ( लेखक अभिषेक कुमार उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा में पुलिस उपाधीक्षक पद पर तैनात हैं ) के फेसबुक वाल से साभार।