गाजीपुर । शेरपुर गंगा कटान से व्यथित होकर गांव के कवि त्रिलोकी नाथ राय ने गाँव के नवजवानों,प्रबुद्ध लोगों का आह्वान करते हुए सोशल मीडिया पर एक कविता लिखी है जो तेजी से वायरल हो रहा है। कविता के माध्यम से कटान को रोकने के लिए लामबंद होने का आह्वान किया है। पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार हैं। 👇
पहले की कुछ बात और,
अब छिड़ी लडाई माटी की ।
आओ मैं इतिहास बताऊं ,
शेरपुर सेमरा घाटी की ।।
सन् 57 से पहले भी,
42 में धरती डोली थी ।
अमर सपूतों ने अपने,
यौवन की खेली होली थी।।
अष्ट शहीदों ने मिलकर ,
अंग्रेजी झंडा फाड़ दिया ।
शासन सत्ता के आंगन में
हिंदुस्तानी झंडा गाड़ दिया ।।
शासन था अंग्रेजों का ,
नतमस्तक नहीं हुए थे हम ।
फिर से याद दिलाना है,
कैसा हम रखते हैं दम।।
वह घाट वह हमारी ,
घाटी चली गई, ।
रुखसत हो कर घर की,
माटी चली गई ।।
दास्ताने दर्द अब,
किस से कहें जनाब ।
पुरखों की हमारी तो ,
थाती चली गई ।।
जिस माटी की खातिर ,
माटी के लाल शहीद हुए।
आज उसी माटी ने ,
फिर से तुम्हें पुकारा है ।।
नतमस्तक अंग्रेज हुए थे ,
इसी शहीदी धरती से ।
फिर से यह हुंकार उठी है
इसी शहीदी धरती से ।।
इतिहास बनाने वाले हम,
फिर से इतिहास बनाना है।
क्रांति सन् 42 की,
वापस फिर से दोहराना है।।
फिलहाल चुनौती देता हूं ,
संग्राम बहुत भीषण होगा ।
उठेंगे लाल माटी के तब,
जब जब उनका शोषण होगा।।
मन में जो जज्बात भरा है,
लावा बाहर आने दो।
पाषाण हृदय भी डोलेगा,
ऐसा अनुमान हमारा है ।।
हमने चलना छोड़ दिया ,
अब उन पथरीली राहों में ।
टूटे वादों के टुकड़े भी ,
अब चुभते हैं पांवो में ।।
अगर गिरा इस बार घरौंदा,
ईट से ईट बजा देंगे ।
चाहे हो सरकार किसी की ,
चूलें पकड़ हिला देंगे।।
व्यर्थ नहीं जाने पाए ,
अष्ट शहीदों का बलिदान ।
निश्चित विजय हमारी होगी ,
अब ना हो संघर्ष विराम।।
उठो जवानों शेरपुर के ,
इतिहास वही दोहराना है ।
18 अगस्त सन 42 की
सरकार को याद दिलाना है।।
गौरवशाली इतिहास हमारा,
धूमिल ना होने पाए।
संग्राम बहुत भीषण होगा ,
संकल्प नहीं रुकने पाए।।
बजी दुंदुभी उठो जवानो,
खतरे में है अपना गांव।
सर पर चाहे कफन बांध लो ,
या फिर दौड़ो नंगे पांव।।
उठो जवानों आंखें खोलो,
शेरपुर सेमरा कुछ तो बोलो ।
जंग छिड़ी अब माटी खातिर ,
थाती खातिर कुछ तो बोलो ।
अमर शहीदों की माटी ने,
तुमको फिर ललकारा है ।
शेरपुर के उठो सपूतों ,
सारा गांव हमारा है ।।
दुर्दशा गांव की देख आज,
अत्यंत व्यथित मन डोल रहा।
माटी के लाल उठो फिर से ,
माटी का लाल ये बोल रहा ।।
जब जब धरा विकल होगी,
तांडव फिर ऐसे ही होगा ।
अब गांव की धरती डोली है ,
संग्राम बहुत भीषण होगा ।।
अब तो बस यह भीष्म प्रतिज्ञा ,
गांव की शान बचानी है ।
माटी में मिल जाना है ,
या कुर्सी को हिलवानी है।।
करता हूं अनुरोध आज मैं,
भारत की सरकार से ।
शेरपुर सेमरा को मत काटो ,
सियासत की तलवार से ।।
यह मूक प्रदर्शन है सबका,
जज्बात हैं अंदर भरे हुए।
जिस दिन यह ज्वाला फूटेगी ,
शासन तेरा हिल जाएगा ।।
अष्ट शहीदों की धरती की,
योगी जी ललकार सुने।
सेनानी बलिदानी,
धरती की आर्द्र पुकार सुनें ।।
इस बार यह धरती डोल गई तो,
शासन तेरा हिल जाएगा ।
आफत कुर्सी पर आ जाएगी,
दामन कांटों से भर जाएगा ।।
आफत में जान यहां अटकी,
शासन के मद में चूर है सब।
तुम समर भूमि में कूद पड़ो।
शासन सत्ता से दूर है हम ।।
अंतर्व्यथा शहीदों की ,
मैं फिर से लेकर आया हूं।
मैं पुनः याचना करता हूं ,
हम लोगों की दरकार सुने ।।
वक्त है अब भी सुन लो फिर से ।
टी. एन. की ललकार सुनो,
गांव की माटी बच जाए,
बस ऐसा कोई उपाय करो ।।
सौगंध है अष्ट शहीदों की,
जर्रा जर्रा हिल जाएगा ।
हम माटी में मिल गए अगर ,
शासन तेरा हिल जाएगा।।
कवि : त्रिलोकी नाथ राय ” महादेव ”