बृजेश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार
अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से वापस जाते ही संकट खडा हो गया है। अफरातफरी मची हुई है,लोग भयभीत हैं।सभी घबराये हुये हैं। उन्हे यह पता नहीं की आगे जीवित भी रहेंगे या नहीं। चारो तरफ गोलियों की गड़गड़ाहट गूँज रही है। आप सोचो अगर आपके आस पास गोलियां चल रही हो। तब सबसे पहले आप वहां से भाग कर जान बचाने का प्रयास करोगे। मामला यह काफी गंभीर है क्योंकि आफगानिस्तान के हालात से अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाला समय वाकई चिंताजनक है ।
फिर से अफगानिस्तान में शरिया लागू हो गया। लोकतत्रं की हत्या कर दी गयी।महिलाओं बच्चों के अधिकार सुरक्षित नही रहेंगे। यहां तक हो सकता है कि महिलाओं का बाजार लगे । महिलाए सुरक्षित नही रहेंगी। सरेआम निलाम की जायेगी। परन्तु सुनने वाला भी कोई नही होगा।न ही कोई इनके विरोध में आवाज उठा सकेगा। क्योकि आतंकवादियों का कोई धर्म नही होता। मामला यही नहीं रूकेगा अत्याचार यहीं नही थमेंगा । इस्लाम की वकालत करने वाले विश्व के सारे के सारे प्रवक्ता इस तालिबानी आतंक पर चुप है।आखिर कब तक आप चुप बैठोगे। इसकी लपटे सीमा से जुड़े देशों तक जरूर पहुचेंगी।
अफगानिस्तान की उथल पुथल पर अगर पैनी नजर डालेंगें तो स्पष्ठ होगा कि तालिबान की मूल जड़ में कही न कही अमेरिका की असफलता साथ साथ कूटनीतिक चाल भी जुड़ी हुई है। अगर दो दशक से अफगानिस्तान पर अमेरिका की सत्ता थी। अमेरिका को यह भी स्पष्ठ था कि आतंकियों का पनाहगार पाकिस्तान है। यह बात न ही कहीं छुपी है। न ही कोई देश इससे अनभिज्ञ था। तालिबानीयों को पनाह देने के साथ साथ पाकिस्तान आतकंवाद के साथ हर कदम खड़ा रहा है। लगे हाथ तालिबान के सत्ता में आते ही चीन पाकिस्तान सऊदी सहित कई देशों नें सरकार को मान्यता भी प्रदान कर दी ।
तालिबान को अगर और बेहतर समझना है, तो वैश्विक कूटनीति पर भी नजर रखनी होगी। मामला पूरी तरह साफ हो जायेगा । चीन के साथ अन्य कई देश हैं ,जो प्रत्यक्ष रूप से तालिबानी आतंकियों को सपोर्ट कर रहे है। अफगानिस्तान की अशान्ति नें विश्व नें उथल पुथल मचा कर रख दिया है। हो सकता है ,यह मामला कुछ दिन में नया मोड़ ले ले ।परन्तु इतना स्पष्ठ है कि अफगानिस्तान के मामले को लेकर जिस तरह विश्व की शक्तिशाली शक्तियां मूकदर्शक बनी रही, यह बहुत ही शर्मनाक है।नाटो जैसे संगठन की प्रासंगिकता पर भी सवाल खड़े होने स्वाभाविक है। लोग भाग रहे हैं। सभी लोग अफगानिस्तान छोड़ कर कहीं दूर किसी देश में भाग जाना चाहते हैं। कई लाख लोग सीमा से जुड़े कई देशों में शरण ले रहे हैं।मामला तुर्की का है जहां लोग शरण के लिये अन्य देशों को पलायन कर रहे हैं। तो दूसरी तरफ तुर्की नें अपनी सीमा पर लंबी दीवाल खड़ी कर ली।जिसकी विश्व के विभिन्न देशों में निन्दा की जा रही है।
दूसरी तरफ अफगानिस्तान के पंजशीर में नार्दन एलायंस औऱ तालिबान के बीच जोरदार जंग के बाद अब सीजफायर को लेकर समझौता हुआ है।पंजशीर इलाके में अहमद मसूद के नेतृत्व में अब तक लगभग 300 तालिबानी के मारे जाने की संभावना व्यक्त की जा चुकी है।नार्दर्न एलांयश ने सरकार चलाने को लेकर तालिबान के सामने कुछ मांगे रखी है। अगर तालिबान इन शर्तों पर तैयार होता है ,तो संभव है साझा सरकार बन सके।लेकिन तालिबान के इतिहास को देखते हुये ,सभी को तालिबान के चाल चरित्र और कार्यप्रणाली पर संदेह है। संभव यह भी है कि जितना प्रगतिशील रूप से अपने आप को जनता के सामने पेश करने का प्रयास अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में कर रहा है यह कभी संभव न हो पायेगा। अमेरिका, चीन ,रूस,पाकिस्तान,सऊदी हो या भारत सभी को विश्व में नये रूप में आने वाले आतंकवाद की आहट महसूस हो रही है।संभव है कि अगर तालिबान में आतंकवाद पर लगाम न लगायी गयी ,तो यह विश्व में किसी न किसी महाशक्ति के लिये संकट पैदा करेगा। और साथ ही तालिबान की दूसरी मजबूरी यह भी है कि उसे अपनी अर्थव्यवस्था चलाने के लिये मदद की जरूरत होगी । परन्तु अगर तालिबान अपने रूख में बदलाव नहीं लाया तो संभव है कि कोई भी देश उसकी सहायता नही करेगा। फिर वही होगा कि तालिबान सब जीतकर भी कंगाल हो जायेगा। वर्तमान के लिये संभव है कि खाद्य और रसद की समस्या न हों। लेकिन आने वाले समय में तालिबान के लिये यह बहुत बड़ा संकट बनकर उभरेगा। इसलिये संभव है कि तालिबान अपने लोंगों में विश्वास बहाली के लिये काम करे । परन्तु अभी तक ऐसा कोई बदलाव जमीन पर उभरकर स्पष्ट रूप से नहीं आया कि जिससे साफ हो सके कि तालिबान के रूख में परिवर्तन होगा।