‘इनसे हैं हम’ : महान पूर्वजों की महागाथा
पुस्तक-इनसे हैं हम
संपादक-डॉ अवधेश कुमार अवध
समीक्षक- डॉ वीरेन्द्र परमार
प्रकाशक-श्याम प्रकाशन, जयपुर
पृष्ठ-180
मूल्य-180/-
वर्ष-2022
भारत भूमि का एक टुकड़ा मात्र नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों की ज्ञान परंपरा है, वसुधैव कुटुम्बकम का उद्घोष है, ऋग्वेद की ऋचा है, गौतम बुद्ध का शांति संदेश है, भगवान श्रीकृष्ण की गीता का निष्काम कर्मयोग है, गुरु नानक की वाणी है, सरस्वती की वीणा है और भगवान शंकर का डमरू है I ज्ञान की समृद्ध परंपरा का नाम भारत है I ज्ञान के कारण ही इसे विश्वगुरु की संज्ञा दी गई है I ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अंधकार से प्रकाश, अज्ञान से ज्ञान और असत्य से सत्य की ओर बढ़ने का अमर संदेश देता है I वेद में कहा गया है कि ज्ञान ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है I भारत को विश्व गुरु के रूप में प्रतिस्थापित करने में हमारे पूर्वजों का अप्रतिम योगदान है I भारत के स्वतंत्रता संग्राम में असंख्य वीरों ने आत्मोत्सर्ग किया जिनमें से कुछ के नाम ही हम जानते हैं I अनेक स्वतंत्रता सेनानी गुमनाम रह गए I हमें अपने उन पूर्वजों के अवदानों को कभी नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने देश को इस मुकाम तक पहुँचाया I आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘इनसे हैं हम’ शीर्षक पुस्तक में 51 प्रतिनिधि पूर्वजों के माध्यम से सभी पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदित की गई है I डॉ अवधेश कुमार अवध मेघालय में रहते हैं और पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक वैशिष्ट्य के अधिकारी व्याख्याता हैं I उनके संपादन में यह पुस्तक प्रकाशित हुई है जिसमें भारत के 51 महापुरुषों की महागाथा प्रस्तुत की गई है I इसमें देश के अनेक अल्पज्ञात और अख्यात महापुरुषों को भी शामिल किया गया है जिनकी महागाथा से देशवासी अभी तक अपरिचित थे I बंकिम चन्द्र चटर्जी, महारानी दुर्गावती, वीर सावरकर, खुदीराम बोस, गुरु गोविन्द सिंह, रानी लक्ष्मीबाई, बिरसा मुंडा, महारानी अहिल्याबाई, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, पृथ्वीराज चौहान, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय सहित 51 महापुरुषों के व्यक्तित्व और योगदानों का अनुसंधानपरक विश्लेषण किया गया है I पुस्तक में पूर्वोत्तर भारत के लाचित बरफुकन, कनकलता बरुआ, उ किआंग नांगबाह, भारत रत्न गोपीनाथ बारदोलोई, उ तिरोत सिंह, मणिराम देवान के साहस, शौर्य और नेतृत्व क्षमता को रेखांकित किया गया है जिनकी पूजा पूर्वोत्तर भारत में तो किसी नायक की तरह की जाती है, लेकिन दुर्भाग्यवश पूर्वोत्तर के बाहर इनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं I यह पुस्तक इतिहासकारों, अनुसंधाताओं के साथ-साथ आम पाठकों के लिए भी उपयोगी साबित होगी I
वीरेन्द्र परमार