गाजीपुर । तहसील में खतौनी में नाम गलत होना व गायब होना आम बात है। धनउगाही का नया स्रोत है।शिकायत पर एसडीएम जमानिया का जवाब कानूनी प्रक्रिया से आइए।गलती कैसे हुई,क्यों हुई?कोई ध्यान नहीं बार बार हो रही है। तहसीलदार साहब खुद ही लॉ एंड ऑर्डर है।
माफिया का अंत हुआ,लेकिन केवल राजनैतिक ।
भूमि कब्ज़ा हटा, लेकिन केवल राजनैतिक अपराधी का ही।
शिकायत,नई व्यवस्था के अंतर्गत संदर्भ संख्या न देना संकेत है, ब्यूरो क्रेसी योगी जी को अपने माफिक चलाने की राह पर।केवल एक नंबर से 10 ही शिकायत जब से लागू हुआ है।जनता तहसील,थाना के आगे विवश।अधिकारी, कर्मचारी लटकाने,टरकाने,कमी निकालने में महार्थ हासिल।एक,दूसरे को आदेश देने की प्रतियोगिता जारी है।लेटर चला योगी जी से या जिलाधिकारी के यहां से कोई फर्क नहीं। दोनों एक समान, उपजिलाधिकारी को, तहसीलदार को, राजस्व निरीक्षक को,लेखपाल को चाहे वो लेखपाल के स्तर का हो न हो।फिर भी वही जाएगा।आप एक बार दे या कई बार।इनकी रिपोर्ट स्पष्ट नहीं होगी।फसाद की जड़ लेखपाल ही होते है।ऊपर के अधिकारी किस बात के क्या अधिकारी होते है?किस आंख से क्या देखते है?एक,दूसरे को बचाने में,पक्ष लेने में मदद जरूर करते है।आज की तारीख में अधिकारी ,कर्मचारी का निष्पक्ष होना व दबाव में काम न करना बहुत बड़ी बात हो गई है।सरकार आदेश दे सकती है।करना हमी को है ये अच्छी तरह से समझते फायदा उठाते है।बीजेपी सरकार योगी जी आदेश दे रहे है लेकिन कोई प्रभाव नहीं है।नित्य जनसुनवाई के अड्डे ,निस्तारण शून्य।जब आप को शिकायत करते है जिसका जवाब पल भर में दिया जा सकता है।वो भी नियत तारीख से एक दिन पहले प्राप्त होगा।अधिकारी,कर्मचारी को निस्तारण लिखने की बहुत जल्दी रहती है।चाहे निस्तारण न हुआ हो या जलेबी बना दिया गया हो।जनसुनवाई के अड्डे 1076,जनसुनवाई पोर्टल, तहसील दिवस, थाना दिवस,सभी अधिकारी अपने कार्यालय 10से 12 बजे तक,विधायक, सांसद,जिले का यदि कोई मंत्री हो,संपूर्ण समाधान दिवस आदि।लेकिन होना क्या है? ढाक के तीन पात।जहा सत्ता पक्ष न हो,वहा थोड़ा और आराम रहता है।नौकरी करना अपना आत्म सम्मान,अपना जमीर बेचने से कम नहीं है।सही को गलत ही करना है।गलत को सही की उम्मीद शब्द भी लजा जाएं।आए दिन अधिकारी के भ्रष्टाचार के किस्से डीएम ,एसडीएम , एसपी, आरटीओ,खनन अधिकारी आदि के किस्से अखबर की सुर्खियों में है।जब कोई मामला शुरू होता है तो अधिकारी को यह इंतजार रहता है कि इस मामले में किसकी परबी या सिफारिश आ रही है। उस हिसाब से काम करना है।या नहीं आ रही है तो क्या करना है? लेकिन इंतजार फोन का रहता जरूर है।कोई प्रार्थना पत्र दे कर भी चक्कर लगाता है।किसी अधिकारी, कर्मचारी के फोन पर संज्ञान लेकर मौके पर पहुंच जाते है।इस सम्बंध में कानून क्या कहता है।समझ के परे हो जाता है।किसी रिटायर या वर्तमान आईएएस अफसर,जज,नेता,अच्छा पत्रकार आदि ने केवल फोन कर दिया कह दिया।संज्ञान हो जाता है।कानून कहा उड़ जाता है।लगता है समरथ के दोष नहीं गोसाई का फार्मूला या दबाव या चमचागिरी ही काम आता है।कोर्ट न हो तो अधिकारी, कर्मचारी ब्यूरो क्रेशी तो शरबत की तरह पी जाएंगे।भला हो कोर्ट बनाने वाला का। राम राम,शिव शिव। ( जागरुक किसान अंब्बुज राय,ढ़ढनी)