Friday, March 14, 2025
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साहित्य से अलग नहीं हो सकती पत्रकारिता: डॉ राजाराम

’पैरोकार साहित्य शिखर सम्मान’’ से सम्मानित हुए डॉ. राजाराम त्रिपाठी

कोलकाता में गूंज उठा ‘ हां, मैं बस्तर बोल रहा हूं’

कोलकाता। जनजातीय साहित्य के पुरोधा और देश के ख्याति प्राप्त जैविक कृषि वैज्ञानिक व पर्यावरणविद् डा. राजाराम त्रिपाठी को 25 फरवरी 2025 को कोलकाता में आयोजित दो दिवसीय पैरोकार साहित्य महोत्सव में ‘’पैरोकार साहित्य शिखर सम्मान’’ से सम्मानित किया गया। इस मौके पर उन्होंने आज की साहित्यिक पत्रकारिता पर बतौर प्रधान-अतिथि व्याखान देते हुए कहा कि साहित्य से अलग होकर पत्रकारिता नहीं हो सकती है। पत्रकारिता का संबंध जन सरोकार से होनी चाहिए। पहले पत्रकारिता में राजनीति का मिश्रण भोजन में अचार की तरह होता था। लेकिन आज की पत्रकारिता में अचार ही अचार देखने को मिलता है। बुकपोस्ट की व्यवस्था खत्म होने से छोटे पत्र पत्र-पत्रिकाओं खास कर साहित्यिक पत्रिकाओं के समक्ष चुनौतियां बढ़ी है। साहित्यिक पत्रिकाएं चलाना अब बहुत कठिन हो गया है। लेकिन फिर भी कुछ साहित्यकार और पत्रकार चुनौतियों से जुझते हुए अपनी पत्रिकाएं निकाल रहें हैं जो सराहनीय है। ताजा टीवी और दैनिक छपते छपते के प्रधान संपादक विश्म्भर नेवर ने डॉ. राजाराम त्रिपाठी को स्मृति चिन्ह और सम्मान पत्र भेंट कर सम्मानित किया। श्री नेवर ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि साहित्यिक पत्रिकाओं के समक्ष आर्थिक संकट होता है। लेकिन ऐसी पत्रिकाओं के बंद होने के सिर्फ आर्थिक कारण नहीं होते हैं। साहित्यक पत्रिका चलाने के लिए जुनून और समर्पण होनी चाहिए। पैरोकार के संपादक और संचालक अनवर हुसैन में यह जुनून और समर्पण दिखता है। इसलिए वह बारह वर्षों से चला रहे हैं और उम्मीद है आगे भी उनकी पत्रिका निकलती रहेगा।
इसके साथ ही पैरोकार साहित्य महोत्सव में युवा नाटककार डॉ. मोहम्मद आसीम आलम को पैरोकार नाट्य सम्मान, पत्रकार शंकार जालान को पैरोकार पत्रकारिता सम्मान और युवा कवियत्रि सीमा गुप्ता को पैरोकार काव्य सम्मान से सम्मानित किया गया। समारोह में वरिष्ठ कवि राज्यवर्धन, विमलेश त्रिपाठी, सेराज खान बातिश, पत्रकार आफरिन हक, साहित्यकार सुरेश शॉ और बिमल शर्मा समेत अन्य विशिष्ट लोग उपस्थित थे। वरिष्ठ कवि डॉ. अभिज्ञात की अध्यक्षता में कवि सम्मेलन भी हुआ जिसमें प्रधान अतिथि डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने अपनी बहुत चर्चित कविता ‘ मैं बस्तर बोल रहा हूं ‘ सुनाई। मंच पर उपस्थित अन्य कवियों ने भी कविता पाठ किया। श्री राजेश ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस मौके पर पैरोकार के विशेषांक का विमोचन भी हुआ।
कोलकाता से प्रकाशित हिंदी साहित्यिक व शोध पत्रिका पैरोकार ने अपनी सफल यात्रा के बारह वर्ष पूर्ण कर लिए है। पत्रिका ने अपनी बारह वर्ष की सफलतम यात्रा को अविस्मरणीय बनाने के लिए कोलकाता में 25-26 फरवरी 2025 को दो दिवसीय ‘’पैरोकार साहित्य महोत्सव’’ का आयोजन किया है।
डॉ. त्रिपाठी दूसरे दिन नई शिक्षा नीतिः हिंदी साहित्य में प्रायोगिक प्रशिक्षण का महत्व विषयक राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर प्रधान अतिथि व्याख्यान देकर छात्रों व शोधार्थियों का मार्ग दर्शन करेंगे। कृषि, नवाचर और सस्टनेबल फार्मिंग टेक्नोलॉजी के लिए भारत सरकार समेत कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मानों से पुरस्कृत और सम्मानित हो चुके डॉ. राजाराम त्रिपाठी की प्रतिष्ठा और सम्मान में ‘’पैरोकार साहित्य शिखर सम्मान’’ भी एक चमकते सितारा के रूप में जुड़ गया। बस्तर व छत्तीसगढ़ के लिए भी यह गर्व की बात है।
इस प्रतिष्ठित पैरोकार साहित्यिक शिखर सम्मान से सम्मानित हुए डा. त्रिपाठी देश के सबसे शिक्षित किसानों में गिने जाते हैं। वे अलग-अलग पांच विषयों में एमए, बीएससी(गणित), एलएलबी, डॉक्टरेट और पीएचडी की कई उपाधियाँ प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने माँ दंतेश्वरी हर्बल समूह की स्थापना की, जिससे आज लाखों जैविक किसान जुड़े हुए हैं। पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पित डा. त्रिपाठी इस वर्ष के अंत तक 51 लाख वृक्षारोपण का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं और अब तक 21 लाख से अधिक पेड़ रोप चुके हैं। वे 40 से अधिक देशों की कृषि अध्ययन यात्राएँ कर चुके हैं और हाल ही में ब्राजील सरकार के विशेष आमंत्रण पर वहाँ की कृषि व्यवस्था का गहन अध्ययन कर लौटे हैं। डॉ. त्रिपाठी की प्रकाशित पुस्तकों में पत्र यात्रा, मैं बस्तर बोल रहा हूं( कविता संग्रह, हिंदी, अंग्रेजी, मराठी), बस्तर बोलता भी है( कविता संग्रह), दुनिया इन दिनों( संपादकीय लेख संग्रह) और गांडा अनुसूचित जाति या जनजाति( शोध ग्रंथ-2024) शामिल है।
डा. त्रिपाठी को ‘ग्लोबल ग्रीन वॉरियर अवार्ड’, ‘राष्ट्रीय कृषि नवाचार पुरस्कार’, और ‘इंडियन ऑर्गेनिक फार्मिंग एक्सीलेंस अवार्ड’ जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं। ‘’पैरोकार साहित्य शिखर सम्मान’’ कृषि के अतिरिक्त न केवल डा. त्रिपाठी के साहित्य के क्षेत्र में वर्षों के अथक परिश्रम का प्रमाण है, बल्कि उनके संपादन में एक दशक से अधिक समय से नियमित प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘’ककसाड़’’ द्वारा आदिवासियों के साहित्य, कला और संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में उनके योगदान को स्वीकृति प्रदान करता है।

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