Wednesday, March 12, 2025
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महामंडलेश्वर स्वामी अभयानंद सरस्वती जी का पट्टाभिषेक, समवाय और संयोगज संबंध पर दिया गूढ़ ज्ञान

लखनऊ।( विशेष संवाददाता)“न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥”
(भगवद गीता 2.20)लखनऊ, गुडंबा गौरा बाग, कुर्सी रोड स्थित स्वामी सनातन आश्रम में आज एक भव्य आध्यात्मिक समारोह आयोजित हुआ, जिसमें महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी अभयानंद सरस्वती जी महाराज का पट्टाभिषेक विधिपूर्वक संपन्न हुआ। इस शुभ अवसर पर आश्रम व्यवस्थापक व ट्रस्टी स्वामी सनातन श्रुति जी ने विधिवत अनुष्ठान के साथ स्वामी अभयानंद सरस्वती जी को आश्रम का संरक्षक बनाया। आपको बता दें कि आश्रम के संस्थापक स्वर्गीय श्री स्वामी सनातन जी महाराज ने पूर्व में स्वामी सनातन श्रुति जी को यह जिम्मेदारी सौंपी थी, और आज स्वामी सनातन श्रुति जी ने इसे महामंडलेश्वर स्वामी अभयानंद सरस्वती जी को प्रदान किया।सैकड़ों श्रद्धालु, संतगण और आश्रम के ट्रस्टियों की उपस्थिति में वैदिक मंत्रोच्चार एवं धार्मिक अनुष्ठानों के साथ यह ऐतिहासिक क्षण संपन्न हुआ। आश्रम परिसर में वेद मंत्रों के उच्चारण और भक्ति संगीत की दिव्य ध्वनि गूंज उठी, जिससे वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत हो गया।इस पावन अवसर पर स्वामी अभयानंद सरस्वती जी ने ‘समवाय’ और ‘संयोगज संबंध’ विषयों पर गूढ़ आध्यात्मिक प्रवचन दिए। उन्होंने समवाय को वेदांत दर्शन की दृष्टि से परिभाषित करते हुए कहा कि यह अविनाभावी संबंध का प्रतीक है, जो दो तत्वों को अखंड रूप से जोड़ता है। जैसे शरीर और आत्मा, सूर्य और प्रकाश का संबंध समवाय होता है, वैसे ही जीव और परमात्मा का संबंध भी शाश्वत और अखंड है।संयोगज संबंध पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि सृष्टि पंचमहाभूतों के संयोजन से बनी है और जीवन में संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने सामाजिक समरसता पर बल देते हुए कहा कि विविध संस्कृतियों और विचारधाराओं के संयोगज संबंध से ही समाज में स्थिरता और शांति संभव है।उन्होंने ईशोपनिषद् के प्रथम श्लोक का उल्लेख करते हुए बताया –”ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥”इसका तात्पर्य यह है कि संपूर्ण सृष्टि ईश्वर से व्याप्त है। जब मनुष्य त्याग और संयम के साथ जीवन जीता है, तभी वह सच्ची शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकता है।इस आयोजन का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि आज से स्वामी अभयानंद सरस्वती जी सनातन आश्रम के संरक्षक होंगे। उनके मार्गदर्शन में आश्रम न केवल आध्यात्मिक उत्थान का कार्य करेगा, बल्कि सनातन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों की संकल्पना को आगे बढ़ाने के लिए विशेष योजनाएं भी बनाई जाएंगी। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की शिक्षाएं सार्वभौमिक हैं और उनका प्रसार ही उनका परम उद्देश्य रहेगा। इस अवसर पर सनातन आश्रम के सभी ट्रस्टी, संतों और श्रद्धालुओं की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम के दौरान विभिन्न आध्यात्मिक और धार्मिक विषयों पर विचार-विमर्श किया गया। आपको बता दें कि पूर्व से स्वामी अभयानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा लखनऊ, हरिद्वार, मेरठ, महोली (सीतापुर), दिल्ली और मुंबई के पवई में आश्रम स्थापित किया गया है। जहां पर वेद, गौ और वेदांत की शिक्षा दी जाती है और पांचों विभूतियों का पालन किया जाता है।कौन थे स्वामी सनातन श्रीजी?स्वामी सनानत श्रीजी ने 1960 में लखनऊ में सनातन आश्रम में सन्यास लिया था। सन्यासी का भूतकाल का इतिहास नहीं होता है। सन्यास लेते समय नाते—रिश्ते की यादें भी यज्ञ कुण्ड में जलाई जाती हैं। फिर भी उनकी पहचान के बारे में हम आपको बता रहे हैं। स्वामी जी ने कोलकाता मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और एमडी की पढ़ाई की थी। उन्होंने इंग्लैंड के मेडिकल कॉलेज और दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में 10 से 12 साल सेवाएं भी दी। वह मध्य प्रदेश के शिवपुरी के रहने वाले थे। उनका जन्म 1912 में हुआ था और वह सनानत आश्रम में 105 साल की आयु में 28 फरवरी 2017 को ब्रम्हलीन हो गए। वह पूरे जीवन ब्रम्हचारी थे।

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