पूर्वांचल के बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी नहीं रहे। गोरखपुर स्थित अपने आवास पर शाम 7.30 बजे आखिरी सांस ली। कल बड़हलगंज स्थित मुक्ति पथ पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। एक समय प्रदेश और खासकर पूर्वांचल के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी ने 1985 में जेल में रहकर गोरखपुर की चिल्लूपार विधान सभा से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी। इस तरह जेल से चुनाव जीतने वाले पहले विधायक बने।
कहते हैं कि इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ने उन्हें वॉक ओवर दे दिया था। इस तरह यूपी में अपराध के राजनीतिकरण की शुरुआत यहीं से हुई और हरिशंकर तिवारी यूपी के बड़े ब्राह्मण नेता के रूप में स्थापित हो गए।
1998 के बाद हरिशंकर तिवारी हर दल की जरूरत बन गए थे। यहां तक कि जब जगदंबिका पाल सूबे के एक दिन के सीएम बने तो उनकी कैबिनेट में भी वह मंत्री थे। 1998 में कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री बने, तो बीजेपी के ही अगले सीएम राम प्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह सरकार में भी मंत्री रहे। इसके बाद मायावती और 2003 से 2007 तक मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी मंत्री रहे।
2007 में पूर्व पत्रकार राजेश त्रिपाठी ने हरिशंकर तिवारी को मात दी। इस चुनाव में पहली बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा पड़ा। इसके बाद 2012 में दोबारा हार के बाद हरिशंकर तिवारी ने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे विनय शंकर तिवारी को दे दी।
उत्तर प्रदेश में सरकार चाहे जिसकी रही हो लेकिन पंडित हरिशंकर तिवारी के प्रभाव में कभी कमी नहीं आई। हर सरकार के मंत्रीमंडल में उनका नाम शामिल रहता था। बीजेपी के कल्याण सिंह ने 1998 में जब बसपा को तोड़कर सरकार बनाई तो उन्हें हरिशंकर तिवारी का भी समर्थन मिला। कल्याण सरकार में हरिशंकर तिवारी साइंस और टेक्नोलॉजी मंत्री थे।
वहीं 2000 में जब रामप्रकाश गुप्त मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हरिशंकर तिवारी को स्टांप रजिस्ट्रेशन मंत्री बना दिया। इसी तरह 2001 में जब राजनाथ सिंह ने बीजेपी सरकार की कमान संभाली तो, उन्होंने भी हरिशंकर तिवारी को मंत्री बनाया था। हरिशकंर तिवारी 2002 में बनी मायावती की सरकार में भी शामिल रहे। मायावती के इस्तीफे के बाद अगस्त 2003 में बनी मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी हरिशंकर तिवारी मंत्री थे। ( स्रोत : दैनिक भाष्कर)