क्या हम लेंगे चमोली की प्रलय से सबक़ ?
चमोली की प्रलय आश्चर्य की बात नहीं है । हम जिस रास्ते पर चले थे, उसी का एक पड़ाव है ये ।
यदि अभी भी नहीं रुके और वापस नहीं लौटे तो लौटने की स्थिति में भी नहीं रह जायेंगे । यदि आपदाएँ अपने आप आएँ तो प्रकृति का कोप कहा जा सकता है । आमंत्रित आपदाओं को तो बस सहा जा सकता है । चूँकि नीति नियंताओं को इनका परिणाम नहीं भोगना पड़ता, तो वो इसका अहसास नहीं कर पाते । इलाज करने के स्थान पर मरहम लगा कर अपने कर्तव्यों की इति श्री समझ लेते हैं ।
प्रकृति, दायिनी है । अपनी आवश्यकतानुसार उससे लेना ग़लत नहीं । लेकिन जब हम उससे छीनते हैं तो उसका मूल स्वरूप प्रभावित होता है । । जब उसका आधार(पेड़) ही काट देंगे जो प्राणवायु देता है, मिट्टी को पकड़ कर रखता है, नदी को प्राकृतिक रूप से बाँध कर रखता है तो जब पहाड़ धराशायी होंगे, पिघलने लगेंगे तो नदियाँ बाँध तोड़ कर बहेंगी ही । यह प्रकृति का क्रोध नहीं क्रन्दन है । एक माँ का विलाप है, जो अपने ही बच्चों द्वारा सताई गई है ।
जिन्होंने इसका दर्द सहा है और सहेंगे, उनके दुःख की भरपाई नहीं की जा सकती । लेकिन अब भी नहीं चेते तो उनकी अनचाही क़ुर्बानियाँ बेकार चली जाएँगी । (पर्यावरण प्रेमी/सामाजिक कार्यकर्ता राजीव चतुर्वेदी जी के कलम से )