Tuesday, April 8, 2025
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HomeEditors' Choice'जनता जब भूखी होती है तो बड़े बड़े सिंहासन खा जाती है'

‘जनता जब भूखी होती है तो बड़े बड़े सिंहासन खा जाती है’


बृजेश कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)

बेलगाम बेरोजगारी बढ़ती महगाई और अर्थव्यवस्था की गिरती हालत भी अब सरकार से सवाल करने लगें हैं कि साहब हमको और कितना गिराओगे। अब चलने की स्थिति भी नहीं रही हमारे हालात रेंगने जैसे हो गये हैं। लेकिन फिर भी आपके चेहरे पर शिकन नहीं है। आखिर कब तक अपने आपको कोरोना महामारी हिंदू मुस्लिम की आड़ में छुपकर वाणी के तीर चलाओगे । आखिर विराम तो लेना ही होगा । भले ही हम गिर रहे हैं लेकिन जब जनता सवाल करेगी ,तो जबाब देना मुश्किल हो जायेगा। किसी ने ठीक ही कहा है कि

जनता जब भूखी होती है तो बड़े बड़े सिंहासन खा जाती है


खैर आज भले ही जनता को बरगलाने का प्रयास किया जा रहा हो लेकिन बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है। बेरोजगारी के नाम पर बीजेपी के प्रवक्ता क्या आलाकमान भी बचते ही नजर आते हैं। मंहगाई की बढ़ती मार से आफ कैमरा पार्टी के पदाधिकारी ही अच्छा खासा नाराज हैँ। हमारा बिल्कुल यह कहना नहीं है कि महगाई की जनक बीजेपी सरकार है। 2012 में महगाई के मुद्दे को विपक्ष में बैठी बीजेपी नें खूब भुनाया था । मंहगाई औऱ बेरोजगारी पर ही केजरीवाल की दिल्ली में ,और बीजेपी सत्ता में आई थी । कालाधन पर आन्दोलन खड़े करने में बाबा रामदेव जी का बड़ा हाथ था। हालांकि जब से सरकार सत्ता में है तब से कभी पतंजलि आश्रम से बाहर जाने की जहमत नहीं उठाये की कहीं जनता मिल गयी ,तो सवाल कर बैठेगी ।बाबा काला धन और 35 रूपये पेट्रोल अब किसको दिया जा रहा है । हमारे देश में तो मंहगाई ऐसा मुह फाड़ कर बैठी है ,कई परिवार के सपने तो कई परिवार ही निगल जा रही है।कोरोना के बाद धीरे धीरे जनता डर से बाहर निकल रही है, तो बड़ा सवाल बेरोजगारी को लेकर शुरू हो गया है। जहां नौकरियों की भर्ती पर पूरी तरह से रोक लगी है तो दूसरी तरफ मैनुफैस्टो में करोड़ो नौकरियां रेवड़ियो की तरह बांटी जा रही है। हालाकि इस मैनुफैस्टों का हकीकत से दूर दूर तक लेना देना नहीं होता। खैर छोड़िये इसी भ्रम का शिकार पिछले कई सालों से जनता हैं । जिसमें बेरोजगारी को जड़ से समाप्त करने के साथ साथ महगाई बेरोजगारी पर गहरी चोट करनें की बात की जाती है । फिर भी यक्ष प्रश्न वही है कि आज तक हम क्यों नहीं एक पावदान आगे बढ़ सके । इसकी मुख्य वजह हमारी जनता के साथ साथ नेताओं का ढुलमुल रवैया देश की दुर्गति एंव अवनति का कारण है।
अब आपको एक चित्र हर विधान सभा क्षेत्र में देखने को मिल रहा होगा कि कई गाड़िया लाव लश्कर सहित रैलियां चल रही है। अब थोड़ा सा पीछे बैक मेमोरी में जाये जब लाशों को कुत्ते नोच रहे थे । आक्सीजन की कमी थी ,और स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से बदहाल थी । क्या कोई झंडाबरदार आपके दुँख में शामिल हुआ था । नहीं तो ऐसे नेताओं का बहिष्कार करना आपका नैतिक दायित्व है। भले ही वह किसी भी राजनैतिक दल से ताल्लुक रखता हो। जनता को समय रहते यह जानना होगा कि कुछ बोतल दारू या चुनाव के समय दिये कुछ पैसे या प्रलोभन से हमारे देश का विकास नहीं हो सकता है। हमारे देश को समृर्धि की जिम्मेदारी हमारी है । हम सबकी है प्रत्येक परिवार ही नहीं प्रत्येक नागरिक की है। हां यह अभी कल्पना करना मुश्किल है कि देश में जातिवाद खत्म हो जायेगा। यह संभव नहीं है क्योकि निचले स्तर पर समाज के हो या उपरी स्तर पर हो नौकरियों में जातिगत समीकरण बहुत बुरी तरह से शामिल हो गया है। जिसकी वजह से हमारा समाज अपनी जाति और कुनबे से ही नहीं निकल पाता तो ऐसी स्थिति में आप विकास की बात कैसे कर सकते हैं। हां आज के समाज की सबसे बड़ी बिमारी है बेरोजगारी। लेकिन पूरी तरह निजात पाना भी मुश्किल है जब तक की इंफ्रास्ट्रकचर पर काम करने के साथ साथ दीर्घकालीन प्रयास बेरोजगारी दूर करने के लिये नहीं किया जाता। इससे बचने के लिये सरकारें लालीपाप के तौर पर लाख दो लाख सरकारी नौकरी देने की बात करके 10 से 20 हजार लोगो तक दे देती है और आगे स्वरोजगार की प्रेरणा देने लगती है। ऐसी हालात में अगर हम आप बेरोजगारी समाप्त होने की कल्पना करते हैं तो यह हमारी आपकी हम सबकी मूर्खता है। सवाल यह भी है कि जनता स्वंय समीक्षा करे कौन सी सरकार नें जनता या समाज देश के हित में काम किया । बाटने के बजाय सौहार्द प्रेम को बढ़ावा देने का प्रयास किया। जाति धर्म के बजाय समाज के लिये जरूरी मुद्दों पर बात की हो । बदले की भावना के बजाय सरकार जनता के हित में काम करे। दलगत राजनीति में जनता को यह समझना होगा कि सरकार बदलते ही अभी तक सिर्फ मुखड़े ही अक्सर बदले हैं । क्या कोई बतायेगा कि कौन सी सरकार है जो मजदूर ,दलित ,पिछड़े,महिलाओं बेरोजगारों के मुद्दे पर खुल कर बोल पाती है। शायद आपको कोई याद नहीं आयेगा। यही वजह है कि देश में हालात अब तक नही सुधरे । इसीलिये जरूरी है की सरकार चलाने वाली पार्टी सवेंदनशील होनी चाहिये । न की संवेदनहीन । हां और मुख्य बात जब तक जनता जनार्दन अपने मत का मूल्य समझ नहीं पायेगी, तब तक सरकार जनता के हित को समझने में नाकाम ही रहेगी।

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