फरीदाबाद से हृदयेश कुमार
अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के अवसर पर अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ एमपी सिंह ने कहा कि गीता में जीवन जीने का सार निहित है गीता मानव मात्र के लिए एकमात्र प्रेरणा का स्रोत है
डॉ एमपी सिंह ने बताया कि महाभारत के युद्ध में कर्तव्य और अकर्तव्य के विषय में युद्ध भूमि में अर्जुन के अज्ञान को दूर करने के लिए श्रीमद्भागवत गीता को जगतगुरु भगवान श्री कृष्ण ने प्रकट किया परंतु व्यक्ति विशेष के मार्गदर्शन के लिए जिस ज्ञान की रचना हुई वह ज्ञान आज 21वीं शताब्दी में मानव मूल्यों के मध्य है और पथ प्रदर्शक की भूमिका में है
डॉ एमपी सिंह ने बताया कि अर्जुन से कही गई श्रीकृष्ण की बातें आज भी प्रासंगिक है वास्तव में मानवों की मूलभूत आवश्यकताओं एवं प्रवृत्तियों से आज भी विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है
वर्तमान जीवन में हर समस्या का समाधान भगवान के प्रति जिज्ञासा कर्म करने की विधि, निष्काम कर्म द्वारा कर्म बंधन से छूटने की रीति, गीता बताती है कर्म योगी को सन्यासी से श्रेष्ट बताकर ग्रस्तों को सच्चे अध्यात्म से जोड़ती है ज्ञान विज्ञान से तृप्त मानव को योगी बता कर दूसरों के लिए भलाई के कार्य में लगती है ब्रह्म तत्व की जिज्ञासा को पूर्ण करती है व्यर्थ आशा व्यक्त करने वाले मनुष्यों को अज्ञानी बताकर सार्थक कर्म करना सिखाती है
डॉ एमपी सिंह ने बताया कि कर्तव्य कर्मों को अशक्त रहित करना बैर भाव से रहित रहना गीता सिखाती है अमृत ज्ञान से भाईचारा प्रेम सौहार्द उत्पन्न होता है अनुचित कार्यों को करने से रोकने की शक्ति देती है जिससे हमारा जीवन सामाजिक जीवन और राष्ट्रप्रेम जागृत रहता है वास्तव में निश्चित फल की इच्छा से अशांत मन का यह पूर्ण उपचार करती है
डॉ एमपी सिंह ने बताया कि सकारात्मक सोच से शरीर में आवश्यक ऊर्जा बढ़ती है और नकारात्मक सोच से ऊर्जा नष्ट होती है हम सर्वशक्तिमान हैं हम दयालु और कृपा निधान है हमें संसार के उत्कृष्ट कार्य करने के लिए बनाया गया है हमें बुद्धि विवेक से काम लेना चाहिए और मानवीय अनुपम गुणों को अपनाना चाहिए गीता में निहित गुणों को आत्मसात करने से मानवीय जीवन उत्तम हो जाता है।
डॉ एमपी सिंह ने बताया कि जैसा मेरा विचार होता है वैसा ही हमारा दृष्टिकोण बन जाता है सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ दुख के समय को भी सहजता के साथ व्यतीत किया जा सकता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सुख और दुख दोनों आते हैं हमें ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि हम गरीब हैं हमारे पास पैसा नहीं है धन का अभाव है ऐश्वर्य नहीं है यह सब समय और स्थिति के अनुसार बदलता रहता है हमें सद कर्म करना चाहिए और करते ही रहना चाहिए