“मैं पुष्प कहलाऊं”
बन शहद महादेव पर चढ़ जाऊं,
पंचामृत में घुल जाऊं,
भंवरों के मन को भा जाऊं,
क्योंकि मैं पुष्प कहलाऊं।।
कांटों को भी मित्र बनाऊं,
पवन से मिलकर उपवन को महकाऊं,
तितलियों संग रास रचाऊं,
क्योंकि मैं पुष्प कहलाऊं।।
नारायण के चरणों में चढ़ गजेंद्र को बचाऊं,
ग्रास को नारायण से मोक्ष दिलवाऊं,
जन्म और मृत्यु दोनो में पूजा जाऊं,
क्योंकि मैं पुष्प कहलाऊं।।
माता का आसन बन भक्तों को धनवान बनाऊं,
कठोर से कठोर हृदय पिघलाऊं,
संगठित होकर हार बनाऊं,
क्योंकि मैं पुष्प कहलाऊं।।
