भाजपा में महाराज के मुख्यमंत्री बनने की संभावना
महाराज ने तो मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस छोड़ी थी । केंद्र में मंत्री बनने के लिए नहीं । केंद्र में मंत्री तो वे बहुत कम उम्र में बन गए थे जब उनके पिता की मौत हुई थी । जब महाराज केंद्र में मंत्री बने तब वे उम्र और अनुभव के लिहाज से बहुत कनिष्ठ थे । उन्हें अपने पिता के वारिस होने के कारण शुरू से ही कांग्रेस में अच्छी खासी तवज्जो मिली ।
भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का लॉलीपॉप देकर कांग्रेस से विद्रोह तो करवा दिया लेकिन भाजपा में आकर उन्हें पता चला कि वे ठगे गए .महाराज के साथ धोखा हो गया । लगभग इसी तरह का धोखा दिलीप सिंह भूरिया के साथ भी हुआ था . वे कांग्रेस के कद्दावर नेता थे । कांग्रेस में रहते हुए वे मध्यप्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की मांग करते रहे । जब उनकी मांग नहीं मानी गई तो वे नाराज़ होकर भाजपा में शामिल हो गए । उन्हें भरोसा था कि भाजपा में उनकी मांग मान ली जाएगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ ।
जो भाजपा नामक पार्टी के चरित्र से परिचित है वे अच्छी तरह जानते है कि भाजपा कोई स्वतंत्र राजनैतिक दल नहीं है बल्कि संघ द्वारा संचालित होने वाला उसका एक अनुषांगिक संगठन मात्र है । भाजपा में संगठन और सरकार से जुड़े हर छोटे से छोटे मसले संघ की मंजूरी से ही हल किए जाते है । इसलिए संगठन में संघ द्वारा भेजे गए संगठन मंत्री का इतना दबदबा है कि वो पार्टी अध्यक्ष से ज़्यादा पावरफुल होता है । मुख्यमंत्री पार्टी अध्यक्ष की अवहेलना कर सकता है लेकिन संगठन मंत्री की नहीं ।
जो दलबदल कर पार्टी में आ रहे है उनका वेलकम तो हो रहा है लेकिन उनकी हैसियत उनकी उपयोगिता के हिसाब से तय होती है । जबकि अन्य पार्टियों में यह मापदंड नहीं है ।
भाजपा में बीजू और कलमी का जो अंतर है उंसे समझे बिना भाजपा की राजनीति नहीं समझी जा सकती । बीजू मतलब बीज द्वारा उगने वाले और कलमी मतलब कलम रोपड़ से उगने वाले l ये बहुत सिंपल परिभाषा है आरएसएस मूल से आये और गैर संघी पृष्ठभूमि से आये भाजपा नेताओं की l
,
जो लोग भी अपने उज्ज्वल कैरियर के लिए भाजपा में जा रहे है उन्हें यह अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि वहां सिर्फ संघी पृष्ठभूमि के ( बीजू ) लोगों की ही चलती है l बाकी कांग्रेस और अन्य पार्टियों के दलबदलूओ (कलमी ) का सिर्फ इस्तेमाल होता है l आपका प्रभाव जब तक रहेगा तब तक वे आपको पर्याप्त महत्व देंगे और जब आपका उनके लिए कोई उपयोग ना हो तो वे दूध में मक्खी की तरह लात मार कर बाहर का रास्ता दिखा देंगे l यह दलबदलू कांग्रेसी कितना ही प्रयास कर लें लेकिन उन्हें भाजपा के आम कार्यकर्ता में वो सम्मान नहीं मिल सकता जो संघ से आये भाजपाई नेता को मिलता है l
जनता पार्टी से अलग होकर जब भाजपा बनी तो उसने गांधीवादी समाजवाद को सिद्धांत रूप में स्वीकार किया था । इससे प्रेरित होकर मध्यप्रदेश के बहुत से समाजवादी नेता और कार्यकर्ता भाजपा में भर्ती हो गए थे । उनमें शिवप्रसाद चिनपुरिया और नगीन कोचर प्रमुख थे । प्रदेश में समाजवादियों का आधार खत्म करने के लिए इनका भरपूर उपयोग किया गया । जब इनकी उपयोगिता खत्म हो गई तब इन्हें दूध में मक्खी की तरह बाहर फेक दिया गया । गांधी परिवार की रूठी हुई बहू मेनका और उसके बेटे वरुण को लोकसभा की टिकिट देकर साँसद बनाया और मेनका गांधी को मंत्री बनाया । लेकिन मोदी जी के दूसरे कार्यकाल में मेनका गांधी को मंत्री नहीं बनाया गया । और अब आगामी चुनावों में माँ बेटा का टिकिट कटने की आशंका जताई जा रही है । क्योकि भाजपा के द्वारा भरपूर इस्तेमाल होने के बाद भाजपा में इनकी उपयोगिता शून्य हो गई है । हमारे क्षेत्र होशंगाबाद नरसिंहपुर क्षेत्र के सांसद राव उदयप्रताप सिंह एक बार कांग्रेस से और दो बार भाजपा के सांसद रह चुके है । दस साल भाजपा के साँसद रहने के बाद भी उन्हें कलमी ही माना जाता है बीजू नहीं । इस बार उनकी टिकिट भी संशय में है । पार्टी किसी बीजू को टिकिट दे सकती है ।
ज़िंदगी भर कांग्रेसी या अन्य गैर भाजपाई रहे लोग अपना इस्तेमाल होने के लिए भाजपा में जाना चाहें तो अवश्य जाएं । लेकिन कोई महत्वाकांक्षा पाल कर भाजपा में न जाएं अन्यथा निराशा होगी । जैसे महाराज को हो रही है । महत्वाकांक्षा बीजू की पूरी होंगी कलमी की नहीं इतना ध्यान रखिए ।
(Gopal Rathi वाया विजय शंकर सिंह)