किसी भी मांगलिक उत्सव या अनुष्ठान का निमंत्रण सूचना नहीं है। सूचना केवल आपद्कालक होता है। इसके लिए किसी भी माध्यम का उपयोग उचित है। फोन, व्हाट्सअप या कोई भी माध्यम। ऐसी स्थिति में यथासंभव मदद की उम्मीद होती है। यह हमारी प्राचीन परंपरा भी है कि यदि किसी के संकट की सूचना मिले तो उसकी मदद में अवश्य पहुंचिए। यथासंभव जो बन पड़े कीजिए।
मंगल कार्य तो नियोजित हैं। मुहूर्त सुनिश्चित है। इसके लिए आभारपूर्वक निमंत्रण की परंपरा है। हल्दी की गांठ के साथ। क्योंकि ये संबंध गठित हैं हमेशा के लिए। निमंत्रण कोई सूचना नहीं है। निश्चित मुहूर्त पर उपस्थिति का आग्रह है। निवेदन है। आयोजक की शोभा है। निमंत्रण को सूचना की भांति किसी संचार माध्यम से नहीं दिया जाना चाहिए और न ही यह स्वीकार्य होना चाहिए। जिसे भी अपने शुभ आयोजन में आपकी आवश्यकता है उसके संस्कार में इतना तो होना ही चाहिए कि उसका निमंत्रण आपके घर तक सम्मान के साथ पहुंचे। तब आप उसे स्वीकार कर अपना समय सुनिश्चित कर सकें।
सनातन भारतीय निमंत्रण की गहरी संवेदन शक्ति ने ही आधुनिक न्याय व्यवस्था में समन का सूत्रपात किया। न्यायालय का समन जिस प्रकार से उपस्थिति का निश्चय है, निमंत्रण भी वही है। यदि सम्मानपूर्वक आयोजक की तरफ से आपको निमंत्रित किया जाता है तो उस तिथि पर आपकी उपस्थिति अनिवार्य है।
निमंत्रण को आजकल सोशल मीडिया का उपक्रम बना दिया गया है। यह नितांत असंवेदनशील संबंध निर्वहन है। यह किसी भी दशा में स्वीकार्य तो नहीं किया जाना चाहिए। जिस आयोजक के लिए यदि आप की कोई महत्ता है तो आपको निमंत्रित करने के लिए उसके पास भी समय होना ही चाहिए। यदि नहीं है तो फिर मान लीजिए कि ऐसा कोई संबंध भी नहीं होता। संबंध का आधार संवेदना है। जुड़ाव है और स्नेह भी। निमंत्रण स्नेहिल होता है, सूचनात्मक नहीं।
।।जयसियाराम।।