( अक्षय तृतीया शुक्रवार दिवसांक 10/05/2024 ई०) भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात लोगों पर ऐसा गाढा़ राजनैतिक रंग चढ़ा कि उनके चश्में की शक्ति में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। लगता है कारीगर में कुछ कमी रह गयी अन्यथा जो चश्मा भगवान को देखने में असमर्थ है वह उनमें जाति को कैसे देख लेता है? भगवान परशुराम में ब्राह्मण दिखाई देते है, श्रीराम में क्षत्रिय दिखाई देते हैं तो कृष्ण में सारा यदुवंश ही दिखाई देता है। अब तो कुछ ब्राह्मण रावण को भी मतदान करने से नहीं हिचकेंगे। भगवान परशुराम का अवतरण वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया को प्रदोषकाल में हुआ था। यह युगादि तिथि है। इसी दिन त्रेता युग भी अस्तित्व में आया था। इसके अतिरिक्त नर- नारायण, हयग्रीव का भी अवतरण इसी दिन माना जाता है। इस दिन किए गये पुण्य कार्य अक्षय होते हैं। परशुरामजी की गणना अष्टचिरंजीवियों में होती है और इनका तथा व्यास जी का अवतार प्रवेशावतार में माना जाता है। भगवान परशुराम मर्यादा पुरुषोत्तम, वीर पुरुषोत्तम तथा धर्म पुरुषोत्तम हैं। इनका असली नाम 'राम' था बाद में परशु( फरसा ) धारण करने से परशुराम कहलाए। माता रेणुका थीं और पिता जमदग्नि थे। ये २४ अवतारों में विष्णु के सोलहवें अवतार हैं तथा महादेव के भक्त हैं।ये माता-पिता के पांचवें संतान थे। ये २१ बार अधर्मी क्षत्रियों का विनाश कर चुके हैं। भगवान परशुराम के अवतरण का प्रमुख कारण दुष्ट क्षत्रिय राजा थे। उनमें प्रमुख हैहयवंशी क्षत्रिय सहस्त्रार्जुन था। एक तरफ हमारी धारणा है कि आतंकवादी की कोई जाति नहीं हैं लेकिन दूसरी ओर आतंकवाद ही एक जाति बन गयी है। तो फिर रावण में ब्राह्मणत्व और सहस्त्रार्जुन में हमें क्षत्रित्व कैसे दिखाई देता है ? क्या गीता के अनुसार रावण और सहस्त्रार्जुन अपने- अपने वर्णाश्रम धर्म का पालन कर रहे थे? यह विचारणीय है। आज की मानसिकता है कि श्रीराम ब्राह्मण विरोधी थे तो परशुराम क्षत्रिय विरोधी थे। अब श्रीराम जी को ही लें, जो परमात्मा विप्र, गाय, देवता और संतों के रक्षार्थ श्रीराम के रूप में धरा पर अवतरित हो सकता है वह ब्राह्मण विरोधी कैसे? वही भगवान श्रीराम का कथन है-
सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम।।
(सुंदरकांड – दोहा- ४८)
अर्थात वह भक्त मुझे अति प्रिय है जिसके हृदय में ब्राह्मणों के चरणों से प्रेम हो।
अब परशुराम जी को लें-
इनके शिष्य थे चंद्रवंशीय क्षत्रिय – भीष्म पितामह। इसके अतिरिक्त चंद्रवंशीय क्षत्रियों में ही श्रीकृष्ण, बलराम ,कंस, अकृतवर्ण और कर्ण भी आते हैं जो परशुरामजी के परम प्रिय शिष्य थे। यहां तक कि कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न को भी इन्होंने शस्त्रास्त्र के साथ धर्म तत्व की दीक्षा दी थी। गणेश जी स्वयं शिवजी के पुत्र थे जिनको एकदंत बनाने का श्रेय परशुरामजी को ही जाता है। यह कोई साधारण जातिवादी मनुष्य के वश की बात नहीं है। परशुराम जी ने ही वैष्णव धनुष सीता स्वयंवर में सूर्यवंशी श्रीराम जी को दिया था। परशुरामजी ने ही गोकर्णतीर्थ का उद्धार किया था। अगर भगवान परशुराम क्षत्रिय विरोधी होते तो इन चंद्रवंशीय और सूर्यवंशी क्षत्रियों को शिक्षा- दीक्षा कैसे देते ? श्रीकृष्ण को चक्र कैसे देते ? भगवान शिव का फरसा दिया हुआ ही परशुरामजी के पास था। उन्होंने आदेश किया कि धरा पर इसकी तुम्हें नितांत आवश्यकता पड़ेगी, इसे संभाल कर रखो और समयानुसार इन आततायियों से पृथ्वी को मुक्त कर धर्म की स्थापना करो।इस प्रकार परमात्मा जाति व्यवस्था से परे है। वह सब जाति में है और सभी जातियां उसमें समाहित हैं। यथा-
‘ चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश:।
तस्य कर्तारमपि मां विद्धय्कर्तारमव्ययम्।।
( गीता १३/४)
उसको जाति के चश्मे से देखना हमारी अज्ञानता होगी। अहंकार, अनीति और अधर्म उसके शत्रु हैं और इसका पोषण करने वाला भी उसका शत्रु है चाहे वह किसी भी वर्ण का हो। हम रविदास जैसे संत को भी पूजते हैं, मां शबरी जैसी भीलनी का गुणगान करते हैं और रावण जैसे अधर्मी का पुतलदाह करते हैं।
