नाम-रुप के भेद में कभी किया है गौर ?
नाम मिला कुछ और तो शक्ल-अक्ल कुछ और
शक्ल-अक्ल कुछ और नयनसुख देखे काने,
बाबू सुन्दरलाल बनाये एचकतानें।
काका हाथरसी जब यह लिख रहे थे तब इशारा किधर रहा होगा? आज काका याद आये वहां एक गुड़िया मर गयी है वीभत्स मौत कहूं ? कैसे ? जब इसी समाज में हत्यारोपियों के पक्ष में भी आ जाते हैं। मुख्यमंत्री श्री योगी घोषणा करते है कि गैंगरप करने वालों का पोस्टर चिपकाया जाएगा इसके बाद यह घटना घटती है । सरकार को अपनी बात याद दिलाने के लिए आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता पोस्टर चिपकाते हैं तो पुलिस ही रोकने लगती है। तब मौत ही कहना बेहतर होगा न ? या और कुछ ? गुड़िया के मौत के बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गयी है। उसका रेप नहीं हुआ है। उसकी कोई हड्डी भी नहीं टुटी है और न ही उसकी जुबान ही कटी थी। तब मौत ना कहूं तो क्या कहूं ? वो तो भला हो पुलिस का जिसने उसका दाह संस्कार राजकीय सम्मान से किया। सरकार इस मौत की क्षतिपूर्ति के लिए दस लाख रुपया देना का एलान किया है जिसमे साढ़े पांच लाख का चेक तत्काल दे दिया गया है। पुलिस अपना काम मुस्तैदी से करती दिखी। पुलिस पर काका का ही लिखा याद करते हुए अपनी बात पूरी होगी-
पड़ा पड़ा क्या कर रहे,रे मुरख नादान,
दर्पण रख सामने,निज स्वरूप पहचान।
निज स्वरूप पहचान नुमाइश मेले वाले,
झुक-झुक करे सलाम खोमचे ठेली वाले।
#हाथरस