काशी की चिंगारी जाकर, झाँसी में जब फूटी थी।
लाल लट्टुओं की सेना पर, काली बनकर टूटी थी।।
दाँतों तले लगाम हाथ दो खड्ग पीठ दामोदर था।
झाँसी का भविष्य केवल अब रानी के निर्णय पर था।।
विधवा रानी देख फिरंगी की जिह्वा ललचाई थी।
और राज्य की बागडोर अब रानी के कर आई थी।।
षड्यंत्रों की साजिश में कुछ अपने हुए पराये थे।
मातृभूमि पर शीश लुटाने, सरफरोश भी आये थे।।
जब जनरल ह्यूरोज नाग बन, झाँसी में फुँफकारा था।
गोद लिए बच्चा को वारिस, कहना नहीं गँवारा था।।
राज्य हड़प करने का उसने अच्छा अवसर देखा था।
पर मर्दानी के माथे पर विधि का अद्भुत लेखा था।।
“झाँसी मेरी है” सुन लो, “मैं इसे नहीं देने वाली।”
राणा और शिवा हर बालक, हर नारी दुर्गा-काली।।
समर भयंकर देख फिरंगी तितर- बितर हो भागे थे।
स्वाभिमान पर तोपें भरकर अगणित गोले दागे थे।।
गाजर – मूली सरिस फिरंगी सेना भूशायी होती।
सिंहों के घातक प्रहार से कट- मरकर जीवन खोती।।
अंग्रेजों ने सेना दर सेना से रण-भू पाटा था।
बार- बार जिसने माफी माँगी थी, थूका-चाटा था।।
झाँसी की छोटी सेना लड़कर शहीद हो जाती थी।
रानी जिधर देखती थी, खप्पर से प्यास बुझाती थी।।
चली सिंहनी घायल होकर, कसकर एड़ लगाया था।
किंतु भयंकर नाले में घोड़ा गिर प्राण गँवाया था।।
रानी का निश्चय था ये अंग्रेज न उनको पाएँगे।
वरना उनके मृत शरीर का मान नहीं रख पाएँगे।।
दामोदर को सौंप सुरक्षित, माँ का फर्ज निभाया था।
गईं कुटी में और जलाने का आदेश सुनाया था।।
पीछे आए अंग्रेजों ने, धू- धू कर जलते देखा।
और देश ने अंग्रेजों को, रिक्त हाथ मलते देखा।।
अद्भुत थीं मनु जो झाँसी में, लक्ष्मी बनकर आई थीं।
बस तेइस की अल्प आयु में, मर्दानी कहलाई थीं।।
पुण्य तीर्थ मनु की समाधि है, हम दर्शन के अभिलाषी।
धन्य- धन्य झाँसी की रानी, धन्य सुताश्री जी काशी।।
धन्य पिता- माता,गुरु इनके, धन्य प्रसूता माता हैं।
धन्य अवध के हाथ लेखनी, धन्य समर्थ विधाता हैं।।।
डॉ अवधेश कुमार अवध
8787573644