सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रान्ति कहते हैं। एक संक्रान्ति से दूसरी संक्रान्ति के मध्य का समय ही सौर मास है। वैसे तो सूर्य संक्रान्ति 12 हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रान्ति महत्वपूर्ण हैं जिनमें मेष, कर्क, तुला, और मकर। सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश का नाम ही मकर संक्रान्ति है। धनु राशि बृहस्पति की राशि है। इसमें सूर्य के रहने पर मलमास होता है। इस राशि से मकर राशि में प्रवेश करते ही मलमास समाप्त होता है और शुभ मांगलिक कार्य हम प्रारंभ करते हैं। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है।
मकर संक्रान्ति के दिन पूर्वजों को तर्पण और तीर्थ स्नान का अपना विशेष महत्व है। इससे देव और पितृ सभी संतुष्ट रहते हैं। सूर्य पूजा से और दान से सूर्य देव की रश्मियों का शुभ प्रभाव मिलता है और अशुभ प्रभाव नष्ट होता है। इस दिन स्नान करते समय स्नान के जल में तिल, आंवला, गंगाजल डालकर स्नान करने से शुभ फल प्राप्त होता है।
मकर संक्रान्ति का दूसरा नाम उत्तरायण भी है क्योंकि इसी दिन से सूर्यदेव उत्तर की ओर चलना प्रारंभ करते हैं। उत्तरायण के इन छः महीनों में सूर्य के मकर से मिथुन राशि में भ्रमण करने पर दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। इस दिन विशेषतः तिल और गुड़ का दान किया जाता है। इसके अलावा खिचड़ी, तेल से बने भोज्य पदार्थ भी किसी गरीब ब्राह्मण को खिलाना चाहिए। छाता, कंबल, जूता, चप्पल, वस्त्र आदि का दान भी किसी असहाय या जरूरतमंदव्यक्ति को करना चाहिए।
राजा सागर के 60,000 पुत्रों को कपिल मुनि ने किसी बात पर क्रोधित होकर भस्म कर दिया था। इसके पश्चात् इन्हें मुक्ति दिलाने के लिए गंगा अवतरण का प्रयास प्रारंभ हुआ! इसी क्रम में राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया। स्वर्ग से उतरने में गंगा का वेग अति तीव्र था इसलिए शिवजी ने इन्हें अपनी जटाओं में धारण किया फिर शिव ने अपनी जटा में से एक धारा को मुक्त किया। अब भागीरथ उनके आगे-आगे और गंगा उनके पीछे-पीछे चलने लगी। इस प्रकार गंगा गंगोत्री से प्रारंभ होकर हरिद्वार, प्रयाग होते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुँचीं यहां आकर सागर पुत्रों का उद्धार किया। यही आश्रम अब गंगा सागर तीर्थ के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही राजा भागीरथ ने अपने पुरखों का तर्पण कर तीर्थ स्नान किया था। इसी कारण गंगा सागर में मकर संक्रान्ति के दिन स्नान और दर्शन को मोक्षदायक माना है। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था इसीलिए उन्होंने शर-शैय्या पर लेटे हुए दक्षिणायन के बीतने की प्रतीक्षा की और उत्तरायण में अपनी देह का त्याग किया। उत्तरायण काल में ही सभी देवी-देवताओं की प्राणप्रतिष्ठा शुभ मानी जाती है।
धर्म-सिंधु के अनुसार-मकर संक्रान्ति का पुण्य काल संक्रान्ति समय से 16 घटी पहले और 40 घटी बाद तक माना गया है। मुहूर्त चिंतामणि ने पूर्व और पश्चात् की 16 घटियों को ही पुण्य काल माना है।
भारतीयों का प्रमुख पर्व मकर संक्रान्ति अलग-अलग राज्यों, नगरों और गांवों में वहाँ की परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। इसी दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है। कुंभ के पहले स्नान का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है।
मकर संक्रान्ति त्योहार विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश/बिहार : मकर संक्रान्ति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। सूर्य की पूजा की जाती है। चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है।
गुजरात और राजस्थान : उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है।
आंध्रप्रदेश : संक्रान्ति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है।
तमिलनाडु : किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है। घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है।
महाराष्ट्र : लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं।
पश्चिमबंगाल : हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है।
असम: भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है।
पंजाब : एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है।