गाजीपुर । ‘पैसे की पहचान यहाँ इंसान की कीमत कोई नहीं, बच के निकल जा इस बस्ती से,करता मोहब्बत कोई नहीं’ कमोबेश यही स्थिति इस बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में देखने को मिल रही है। कहने को जिला पंचायत चुनाव पार्टी स्तर पर लड़ा जा रहा है लेकिन सभी पार्टियों में बगावत देखने को मिल रहा है। क ई जगह तो पार्टी ही अपने पुराने कार्यकर्ताओं को दरकिनारे कर पैसे वालों को टिकट दे दिया है जिस कारण पार्टी के बड़े नेता कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं।
रेवतीपुर द्वितीय से जिला पंचायत चुनाव में सपा,बसपा,भाजपा सहित सुहैलदेव भासपा ने प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है तो क ई निर्दल भी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। बसपा ने अपने वरिष्ठ नेता गुलाब राजभर के पुत्र धनंजय राजभर को टिकट दिया है। मालूम हो कि पिछले चुनाव में बसपा ने गिरधारी पाण्डेय को टिकट दिया था जिनको विजय श्री भी प्राप्त हुआ था। इस बार बसपा ने राजभर पर दांव आजमाकर सुभासपा खेमे में सेंध लगाने लगाने को जो चाल चली है उसमें कितना कामयाब होती है यह गौतम के वोट पर निर्भर करता है। गौतम क्षेत्र के बड़े गाँव नौली के निवासी हैं और बसपा के कोर वोटर को ही लुभा रहे हैं। इसी तरह सपा अपने दल जो जीताने के लिए लामबंदी कर रही है। सपा ने इस बार उतरौली इंजीनियर मनीष पाण्डेय को टिकट देकर एक तीर से दो निशाना सांधने की कोशिश की है। एक तरफ ब्राह्मण को टिकट देकर यह कोशिश की है कि पिछले बार की तरह ब्राम्हण लामबंद हुए तो सपा की गोटी लाल होगी,दुसरी ओर आगामी विधानसभा-लोकसभा चुनाव में यह कह कर वोट लेने में आसानी होगी कि हमने आपका सम्मान किया है। लेकिन यहाँ भी पेंच है। यहाँ नगसर निवासी अशोक ओझा निर्दल के रुप में मैदान में डटे हुए हैं। जातिवादी लोग किस ओर जाएँगे ,यह कहना मुश्किल है। सपा के लिए दुसरी मुसीबत सपा के कोर वोटर यादव हैं जिस जाति से यादव मैदान में हैं जिनको अपने जाति में सम्मानित रुप से देखा जाता है।
सबसे कड़ी परीक्षा भाजपा को है। यहां अपने पुराने कार्यकर्ता को किनारे कर नये नवेले को पार्टी ने टिकट दे दिया है। पहले पार्टी के पुराने कार्यकर्ता अशोक चौरसिया को आगे किया गया। बाद में लालबहादुर सिंह को पार्टी ने लड़वा दिया है। अब अशोक चौरसिया जैसे कर्मठ लोग संगठन में रहते हुए चुनाव लड़ रहे हैं। अशोक चौरसिया को जानने वाले गाँव-गांव में लोग हैं जबकि पार्टी द्वारा अधिकृत उम्मीदवार को लोग गाँव में कैसे लेके जाएँगे खुद कार्यकर्ता ही असमंजस में हैं। यानि सपा,बसपा और भाजपा तीनों पार्टी ने अपने ज़मीनी कार्यकर्ता को छोड़ पैसे वालों पर दांव लगाया है । जबकि जमीनी कार्यकर्ता कहीं बागी तो कहीं भीतरघात करेगा इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।