Tuesday, September 17, 2024
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” नाम आजाद, पिता स्वतन्त्रता और घर जेलखाना”

प्रतिमा की गयी सफाई।

चन्द्र शेखर आजाद बाल गंगाधर तिलक दत्तोपंत ठेंगड़ी व श्याम जी कृष्ण वर्मा को भारत रत्न देने की मांग

गाजियाबाद (23 जुलाई)। आज शनिवार को हापुड़ मोड़ पर अमर बलिदानी चन्द्रशेखर आजाद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर जयंती पर नमन किया
इस अवसर पर 23जुलाई 1856को जन्मे स्वाधीनता आंदोलन के अगुआ बाल गंगाधर तिलक जी के जन्म दिवस की देश वासियों को बधाई दी गी।

चंद्रशेखर आजाद, जो सदा आजाद रहे
चन्द्र शेखर आजाद प्रतिमा पर गंदगी को वृद्धावस्था के बावजूद व्यापारी नेता पंडित अशोक भारतीय व संदीप त्यागी रसम ने अपने हाथों से साफ किया पंडित अशोक भारतीय ने नगर निगम से निवेदन किया कि बलिदानियों की प्रतिमा व आसपास नियमित रूप से साफ सफाई व्यवस्था चुस्त दुरुस्त रहनी चाहिए
संदीप त्यागी रसम ने नगर निगम से निवेदन किया कि चन्द्र शेखर आजाद प्रतिमा पर लगा बाक्स भी ऊपर से टूटा हुआ है इसको शीघ्र मरम्मत कराये जाने की आवश्यकता है
शहीदों के सम्मान में वरिष्ठ नागरिक प्रकोष्ठ महानगर भाजपा गाजियाबाद मैदान में
वरिष्ठ नागरिक प्रकोष्ठ के महानगर भाजपा गाजियाबाद के संयोजक डॉ ओपी अग्रवाल सहित सभी पदाधिकारियों ने रोष व्यक्त करते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग की तथा दोषी के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने की मांग की
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों में चन्द्रशेखर आजाद का नाम सदा अग्रणी रहेगा। उनका जन्म 23 जुलाई, 1906 को ग्राम माबरा (झाबुआ, मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनके पूर्वज गाँव बदरका (जिला उन्नाव, उत्तर प्रदेश) के निवासी थे; पर अकाल के कारण इनके पिता श्री सीताराम तिवारी माबरा में आकर बस गये थे।

बचपन से ही चन्द्रशेखर का मन अंग्रेजों के अत्याचार देखकर सुलगता रहता था। किशोरावस्था में वे भागकर अपनी बुआ के पास बनारस आ गये और संस्कृत विद्यापीठ में पढ़ने लगे।

बनारस में ही वे पहली बार विदेशी सामान बेचने वाली एक दुकान के सामने धरना देते हुए पकड़े गये। थाने में हुई पूछताछ में उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतन्त्रता और घर का पता जेलखाना बताया। इस पर बौखलाकर थानेदार ने इन्हें 15 बेंतों की सजा दी। हर बेंत पर ये ‘भारत माता की जय’ बोलते थे। तब से ही इनका नाम ‘आजाद’ प्रचलित हो गया।

आगे चलकर आजाद ने सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से देश को आजाद कराने वाले युवकों का एक दल बना लिया। भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, बिस्मिल, अशफाक, मन्मथनाथ गुप्त, शचीन्द्रनाथ सान्याल, जयदेव आदि उनके सहयोगी थे।

आजाद तथा उनके सहयोगियों ने नौ अगस्त, 1925 को लखनऊ से सहारनपुर जाने वाली रेल को काकोरी स्टेशन के पास रोककर सरकारी खजाना लूट लिया। यह अंग्रेज शासन को खुली चुनौती थी, अतः सरकार ने क्रान्तिकारियों को पकड़ने में पूरी ताकत झोंक दी।

पर आजाद को पकड़ना इतना आसान नहीं था। वे वेष बदलकर क्रान्तिकारियों के संगठन में लगे रहे। ग्वालियर में रहकर इन्होंने गाड़ी चलाना और उसकी मरम्मत करना भी सीखा।

17 दिसम्बर, 1928 को इनकी प्रेरणा से ही भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु आदि ने लाहौर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय के ठीक सामने सांडर्स को यमलोक पहुँचा दिया। अब तो पुलिस बौखला गयी; पर क्रान्तिवीर अपने काम में लगे रहे।

कुछ समय बाद क्रान्तिकारियों ने लाहौर विधानभवन में बम फेंका। यद्यपि उसका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं था। बम फेंककर भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने आत्मसमर्पण कर दिया। उनके वीरतापूर्ण वक्तव्यों सेे जनता में क्रान्तिकारियों के प्रति फैलाये जा रहे भ्रम दूर हुए। दूसरी ओर अनेक क्रान्तिकारी पकड़े भी गये। उनमें से कुछ पुलिस के अत्याचार न सह पाये और मुखबिरी कर बैठे। इससे क्रान्तिकारी आन्दोलन कमजोर पड़ गया।

वह 27 फरवरी, 1931 का दिन था। पुलिस को किसी मुखबिर से समाचार मिला कि आज प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में चन्द्रशेखर आजाद किसी से मिलने वाले हैं। पुलिस नेे समय गँवाये बिना पार्क को घेर लिया। आजाद एक पेड़ के नीचे बैठकर अपने साथी की प्रतीक्षा कर रहे थे। जैसे ही उनकी निगाह पुलिस पर पड़ी, वे पिस्तौल निकालकर पेड़ के पीछे छिप गये।

कुछ ही देर में दोनों ओर से गोली चलनेे लगी। इधर चन्द्रशेखर आजाद अकेले थे और उधर कई जवान। जब आजाद की पिस्तौल में एक गोली रह गयी, तो उन्होंने देश की मिट्टी अपने माथे से लगायी और उस अन्तिम गोली को अपनी कनपटी में मार लिया। उनका संकल्प था कि वे आजाद ही जन्मे हैं और मरते दम तक आजाद ही रहेंगे। उन्होंने इस प्रकार अपना संकल्प निभाया और जीते जी पुलिस के हाथ नहीं आये।


इस अवसर पर मुख्य रूप से पंडित अशोक भारतीय डॉक्टर ओपी अग्रवाल गाजियाबाद नाम परिवर्तन अभियान संयोजक एडवोकेट संदीप त्यागी रसम ज्ञानेंद्र सिंह राकेश गुप्ता विनोद कुमार आदि उपस्थित रहे।

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