हिन्दी दिवस पर विशेष
मेरी मातृभाषा हिन्दी नहीं है। मेरी मातृभाषा भोजपुरी है। हालांकि ये बात सही है कि बोलियों के बीच खड़ी बोली के लिए अवधी को मानक भाषा माना गया फिर भी हमने महसूस किया है कि ज्यादा देर खड़ी बोली में बात करने पर मन उबने लगता है। हो सकता है कि ज्यादा समय गांव में व्यतीत हुआ है इसलिए। अब भी खड़ी बोलने पर टोन भोजपरी में ही निकलती है। इस टोन की वजह से कुछ साथी उसी लहजे में बोलने की कोशिश करते हुए मजा लेने की कोशिश करते हैं तो क ई बार लड़ाई भी हो जाती है । यह मजे की बात है कि आपकी अपनी बोली आपको कभी थकान नहीं करती है।अपनो, स्वजनों के बीच खड़ी बोली बोलने से बचिए। आपका परिवार परंपरागत रूप से जिस बोली से संबंध रखता है आपस में उसी का प्रयोग करिए। आनंद आयेगा। बहुत अपनेपन का अनुभव होगा। कर के देखिए।