हर बार चुनाव? अब बस करो – एक बार में हो सभी चुनाव !
सोचिए ज़रा – हर साल कहीं न कहीं चुनाव, नेता प्रचार में, अफसर तैनात, विकास रुका, खर्च बेहिसाब। क्या इससे देश आगे बढ़ेगा? अब वक्त आ गया है कि हम “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की ओर बढ़ें – ताकि नीतियां बनें, काम हो, और जनता को बार-बार परेशान न होना पड़े।
पहले भी देश में 1951 से 1967 तक एक साथ चुनाव होते थे। फिर राजनीतिक अस्थिरता के कारण ये सिस्टम टूट गया। अब भाजपा फिर से उसे वापस लाना चाहती है – अटल जी का सपना, मोदी जी की प्राथमिकता।
अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो लाखों करोड़ रुपए की बचत होगी – जो आज बार-बार होने वाले चुनावों में उड़ जाता है। इतना पैसा तो सरकार के हेल्थ और एजुकेशन बजट का बड़ा हिस्सा बन सकता है!
मतदाताओं को बार-बार लाइन में लगने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, अफसरों को काम से बार-बार हटाना नहीं पड़ेगा, और सबसे बड़ी बात – सरकारें आराम से बिना चुनावी दबाव के काम कर पाएंगी।
देश में पहले से कुछ राज्यों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं – तो क्यों न पूरे भारत में ऐसा हो?
अब समय है एकजुट होकर बदलाव की ओर बढ़ने का और एक राष्ट्र एक चुनाव को अपनाए।