Sunday, September 8, 2024
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दुर्लभ  : ब्रिटिश हुकूमत के दौर के मतदाता की सूची है कुंवर मुहम्मद रज़ा के संग्रहालय में

इंडिया बुक के बाद अब एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में हुआ कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा नाम दर्ज

ग़ाज़ीपुर की ऐसी मतदाता सूची जिसे एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में किया गया शामिल

एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स -2024 में 118 वर्ष पुरानी भारतीय उर्दू भाषा मतदाता सूची हुआ शामिल

118 वर्षीय मतदाता सूची दो माह पूर्व इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में हो चुका है दर्ज

ग़ाज़ीपुर, दिलदारनगर || उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद ग़ाज़ीपुर में विधानसभा ज़मानियाँ अन्तर्गत ग्राम पंचायत दिलदारनगर स्थित अल दीनदार शम्सी म्यूज़ियम एंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक, निदेशक एवं संग्रहकर्ता कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा ने संग्रहालय के लिए पिछले 20 वर्षों से ऐसे कई पांडूलिपियों, दूर्लभ प्राचीन वस्तुओं का संग्रह कर रखा है। इन्हीं में से 118 वर्ष पूर्व का भारतीय उर्दू भाषा मतदाता सूची को राष्ट्रीय धरोहर के रूप मे संरक्षित कर एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 में अपना नाम दर्ज करवाया है।
एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की ओर से शनिवार को कोरियर द्वारा बाक्स सहित सर्टिफिकेट, मेडल, बैज, पेन, गाड़ी स्टीकर प्राप्त हुआ।
सर्टिफिकेट पर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, वियतनाम बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, नेपाल बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के प्रधान संपादक एवं संग्रहालय रेकोर दुनियाँ, इंडोनेशिया के उप निदेशक तथा एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स मलेशिया के अध्यक्ष सहित पांच देशों के उच्च स्तरीय अधिकारीगण के हस्ताक्षर युक्त प्रमाण-पत्र प्राप्त हुए हैं। जिस पर 20 मई 2024 को प्रमाणित दिनांक दर्ज करते हुए 06 जुन 2024 दिनांक को प्रकाशित किया गया है। इस 118 वर्षीय उर्दू भाषा मतदाता सूची दो माह पूर्व इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने भी दर्ज किया है।

118 वर्षीय दुर्लभ भारतीय उर्दू भाषा मतदाता सूची
नसीम रज़ा बताते हैं कि संग्रहालय में उर्दू भाषा में प्रकाशित मतदाता सूची में सर्वप्रथम सन् 1904-1905 ई.(उर्दू) 1906-1907 ई.(उर्दू) 1918-1919 ई.(उर्दू) एवं 1945 ई. (हिन्दी, उर्दू) के कुल 5 मतदाता सूची सुरक्षित किए गए हैं। उर्दू मतदाता सूची ब्रिटिश शासन काल के उत्तर प्रदेश के जनपद गाजीपुर के परगना, तहसील वर्तमान विधानसभा ज़मानिया क्षेत्र का है। प्रत्येक सन् के मतदाता सूची में सिर्फ 50 पुरुषों के नाम अंकित किए गए हैं। तब इस तहसील में कुल 50 वोटर हुआ करते थे और उन्हीं वोटरों में से 4 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे। बाकी 46 सदस्य उन 4 प्रत्याशियों को मतदान के जरिए चुनाव करते थे। हार जीत के उपरांत चुने गए एक मेंबर ‘लोकल बोर्ड मेंबर’ कहलाते थे जो क्षेत्र के विकास के लिए काम करते थे। आजादी से पूर्व वर्ष 1900 ईस्वी में तहसील क्षेत्र के विकास के लिए लोगों का चुनाव किया जाता था। मतदाता सूची तैयार करने के लिए क्षेत्र के हर गांव से तीन-चार मानिंद सम्मानित लोगों का चयन किया जाता था। इस तरह कुल 50 लोगों की सूची तैयार की जाती थी इन्हीं में से उनकी योग्यता के अनुसार चार लोगों को उम्मीदवार बनाया जाता था। उसमें से चयनित लोकल बोर्ड प्रत्याशी ही क्षेत्र के विकास के लिए अपनी समस्याओं को जिला बोर्ड में रखते थे। इस मतदाता सूची में क्षेत्र के जमींदारों एवं मुखियाओं तथा सम्मानित व्यक्ति को रखा जाता था। जो सरकार को लगान अथवा कर जमा करते थे। उन्हीं लोगों को वोट देने का अधिकार था। यह मतदाता सूची कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा ख़ाँ के अनुसार उनके पूर्वजों से प्राप्त हुआ है। जिसमें इनके परिवार के चार पूर्वज ज़मींदारों सहित दादा नसीरुद्दीन ख़ाँ परदादा मंसूर अली ख़ाँ आदि ज़मींदारों के नाम अंकित हैं।
अंग्रेजों ने वर्ष 1857 के बाद लोकल सेल्फ गवर्नमेंट कानून पारित किया कुछ वर्षों बाद वर्ष 1884 में इसे पूरी तरह से लागू कर दिया गया। इसका उपयोग स्थानीय विकास के लिए किया जाता था। स्थानीय समस्याओं के निवारण के लिए कमेटी का चयन किया जाता था। इस सूची में वही लोग सदस्य बनाए जाते थे जो करदाता होते थे। चयनित सदस्य स्थानीय मुद्दों को उठाकर उनका निवारण करते थे। हालांकि इसमें संशोधन के बाद पहली बार इलेक्शन एक्ट 1909 में पारित हुआ था इसके बाद बदलते समय के साथ लगातार इसमें संशोधन भी होते रहे।

स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार का आम चुनाव
चुनाव आयोग ने छपवाए 397 अखबार। 1951 में हुए पहले आम चुनाव से सही मायने में भारत में लोकतंत्र का आगाज हुआ। उस समय चुनाव आयोग को भारतीय मतदाताओं को चुनाव को लेकर जागरूक करने के लिए अखबार छपवाने पड़े थे। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को चिंता इस बात को लेकर थी कि 18 करोड़ मतदाताओं को कैसे ‘वोट’ देने के लिए प्रेरित किया जाए। उन्हें कैसे बताया जाए कि उनका बूथ कहाँ है? मतदान कैसे करना है? इसके लिए अलग-अलग भाषाओं के 397 अखबार शुरू किए गए। इन अखबारों में चरणबद्ध तरीके से लोगों को समझाया और बताया गया कि कहां और कैसे मतदान होगा? तथा मतदान से क्या बदल जाएगा?

120 वर्षों में हुई 8500 गुना मतदाताओं की वृद्धि
संग्रहकर्ता कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा बताया कि आज़ादी के बाद जनपद ग़ाज़ीपुर में ज़मानिया उत्तर प्रदेश विधानसभा का एक निर्वाचन क्षेत्र रहा है। विकिपीडिया एवं इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के वेबसाइट के अनुसार सन् 2014 ई. के चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या 3,87,810 थी। वहीं 7 मार्च 2022 ई० को हुए विधानसभा चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या 4,25,978 दर्ज हुआ। जिसमें महिलाएं 1,95,064 एवं पुरुषों की संख्या 2,30,899 शामिल हैं।
जबकि सन् 1904-1905 एवं 1906-07 ई. में कुल मतदाताओं की संख्या 50 थी जिसमें केवल पुरुष ही शामिल थे। इस तरह इतिहास के दृष्टिकोण से पिछले 118 से 120 वर्षों में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में जनपद ग़ाज़ीपुर के तहसील विधानसभा ज़मानियां में मतदान के प्रति मतदाताओं में 8500 गुना वृद्धि दर्ज की जा सकती है। जो एक अनूठा रिकॉर्ड है।
वहीं सन् 1945 ई. के मतदाता सूची में तहसील ज़मानियाँ अन्तर्गत ‘दिलदारनगर पोलिंग स्टेशन’ में सिर्फ 26 मुस्लिम पुरूषों के नाम अंकित किए गए हैं। यह मतदाता सूची सिर्फ मुस्लिम वर्ग के लिए तैयार किया गया था। हो सकता है कि हिन्दु आदि समुदाय के अलग-अलग मतदाता सूची प्रकाशित किए गए हों, जिसकी खोज एवं शोध जारी है। उस समय के क्षेत्रीय ज़मींदार, गाँव के मुखिया आदि के नाम अंकित किए गए हैं। यह वोटर लिस्ट हिन्दी एवं उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित किया गया है।
समय बीता…! आजादी के बाद चुनाव की महत्ता बढ़ती गई। मतदान और भी लोकप्रिय होते गए! मतदाताओं की संख्या में दिन-प्रतिदिन कई गुना की बढ़ोत्तरी होती रही।

भारतीय वयस्क को मिला मत देने का अधिकार
भारतीय संविधान ने आज वोट देने के अधिकार को अमीरों, ज़मींदारों, मुखियाओं एवं मानिंद हस्तियों से बाहर निकालकर गरीबो एवं ग्रामीण परिवेश में आम जनमानस तक पहुंचा दिया है।
भारत सरकार द्वारा लम्बे समय से चली आ रही जनता की मांग को पूरा करने के लिए 61वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,1988 (Constitutional amendment act) के तहत मतदान की आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। आज भारत के 18 वर्ष से लेकर प्रत्येक महिला-पुरुष नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकता है। इसलिए इतिहास के दृष्टिकोण से भारत के लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया को जानने एवं समझने के लिए हमे इतिहास के अछूते पन्ने को पलटना पड़ेगा। अर्थात् लगभग 120 वर्ष पुरानी उर्दू भाषा में प्रकाशित मतदाता सूची को समझना अपने आप में एक दुर्लभ, अनूठा, अतिमहत्वपूर्ण, ऐतिहासिक खोजपरक दस्तावेज़ात, अभिलेख एवं पांडुलिपि है जो हमारे भारत देश के लिए राष्ट्रीय धरोहर है। आज़ादी से पूर्व, ब्रिटिश शासन काल का यह उर्दू भाषा में प्रकाशित मतदाता सूची अपने-आप में एक अद्भुत संंग्रह है, तथा अखंड भारत जैसे भारत, पाकिस्तान, और बांग्लादेश आदि पड़ोसी देशों के शोधकर्ताओं एवं इतिहासकारों के लिए विशेष महत्व का है। यह दुर्लभ उर्दू भाषा मतदाता सूची संभवतः भारत में एकमात्र पांडुलिपि/दस्तावेज़ सुरक्षित बची हुई है। जिसको जनपद ग़ाज़ीपुर दिलदारनगर के कुँअर नसीम रज़ा ने संग्रहित कर भारतीय राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन संरक्षण का कार्य किया है। इसलिए संग्रहकर्ता मुहम्मद नसीम रज़ा खां ने भारतीय मतदाता सूची/वोटर लिस्ट सुरक्षित एवं संरक्षित कर एक अनूठा कीर्तिमान स्थापित किया है।

एशिया पटल पर स्थापित हुआ कुँअर नसीम रज़ा द्वारा संग्रहित 118 वर्षीय वोटर लिस्ट
भारत में ऐसे दुर्लभ बचे हुए 118 वर्षीय एकमात्र उर्दू भाषा में प्रकाशित मतदाता सूची को एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स-2024 ने मुहम्मद नसीम रज़ा ख़ाँ का नाम दर्ज कर सर्टिफिकेट, मेडल, पेन, बैज गाड़ी स्टीकर एवं एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स-2024 की पुस्तक प्रदान कर सम्मानित किया।

भारत का नाम गौरवान्वित करने वाले एशिया पटल पर दर्ज कराते हुए इस सम्मान से कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा के शुभचिंतकों, मित्रों सहित ग्रामवासी, क्षेत्रवासी तथा जनपदवासियों, प्रदेशवासियों सहित प्रत्येक भारतीय मतदाताओं, इतिहासकारों, शोधकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई और बधाई देने वालों का ताँता लग गया।

संग्रह का नाम–

120 वर्ष पुरानी भारतीय उर्दू मतदाता सूची का संग्रह

उर्दू भाषा मतदाता सूची की सन् एवं संख्या–
सन् 1904-1905 ई.(उर्दू भाषा) संख्या 1
सन् 1906-1907 ई.(उर्दू भाषा) संख्या 1
सन् 1918-1919 ई.(उर्दू भाषा) संख्या 1
सन् 1945 ई. (हिन्दी, उर्दू भाषा) संख्या 2

नोट– उपरोक्त सभी भारतीय मतदाता सूची ब्रिटिश शासन काल के हैं।

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