महामानव गणेश शंकर विद्यार्थी को पुण्यतिथि पर नमन – मनीष कुमार त्यागी
निष्पक्ष, निर्भीक, ईमानदार, देश के आम जनमानस की सशक्त आवाज, एक सुधारवादी विचारधारा वाले व्यक्ति, धर्मपरायण और ईश्वरभक्त व्यक्ति को हम से हमेशा के लिए छीन लिया गया था। हालांकि देश में यह वह दौर था जब तत्कालीन समाज में बहुत ही तेजी के साथ धर्मनिरपेक्षता के बीज पड़ रहे थे,
लेकिन फिर भी धर्म के नाम पर एक बहुत बड़ा अर्धम हुआ था,
गाज़ियाबाद, 25 मार्च 2022।
आज मां भारती के सच्चे सपूत भारत के एक ऐसे विश्व प्रख्यात पत्रकार महामानव गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ की पुण्यतिथि है जिसके देश व समाज को समर्पित जीवन की व्याख्या बहुत सारे कलमकारों ने अपने-अपने हिसाब से कर रखी है। आज ही के दिन 25 मार्च 1931 को जब उत्तर प्रदेश के कानपुर में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी दिए जाने के विरोध में तत्कालीन काँग्रेस सदस्यों द्वारा जुलूस निकाला जा रहा था। तो उस वक्त जुलूस जब एक समुदाय विशेष के क्षेत्र से गुजरा तब अचानक ही इस क्षेत्र में जबरदस्त ढंग से सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। जब गणेश शंकर ‘विधार्थी’ को दंगा भड़कने की सूचना मिली तो वे अकेले ही उस इलाके में दंगों को रोकने का प्रयास करने के लिए निकल पड़े और एक दूसरे को मारकर सब कुछ खत्म करने पर उतारू उपद्रवियों की एक भीड़ के जत्थे को समझाने की कोशिश करने लगें, किन्तु दंगों को रोकने के इस प्रयास का भयावह परिणाम यह हुआ की गणेश शंकर ‘विधार्थी’ को कानपुर के चौबे गोला चौराहे के पास नृशंसता पूर्वक चाकू घोंप कर व तेज धार वाले हथियारों से सरेआम काट डाला गया। हत्या किस समुदाय के लोगों ने की इस बात का अंदाजा हत्या की नृशंसता व क्रूरता से स्पष्ट रूप से लगाया जा सकता था।
इस झकझोर देने वाली घटना के साथ ही देश के इतिहास में 25 मार्च दिन एक महामानव की हत्या के दिन के रूप में दर्ज हो गया था, क्योंकि इस दिन गणेश शंकर ‘विधार्थी’ जैसे निष्पक्ष, निर्भीक, ईमानदार, देश के आम जनमानस की सशक्त आवाज, एक सुधारवादी विचारधारा वाले व्यक्ति, धर्मपरायण और ईश्वरभक्त व्यक्ति को हम से हमेशा के लिए छीन लिया गया था। हालांकि देश में यह वह दौर था जब तत्कालीन समाज में बहुत ही तेजी के साथ धर्मनिरपेक्षता के बीज पड़ रहे थे,
लेकिन फिर भी धर्म के नाम पर एक बहुत बड़ा अर्धम हुआ था,
हालांकि गणेश शंकर ‘विधार्थी’ ने हमेशा अपनी धार्मिक पहचान को पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से बरकरार रखने का कार्य किया था।
गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ एक ऐसे पत्रकार थे जो हर परिस्थिति में हमेशा निष्पक्ष रहते थे और सत्य को सत्य कहना व अपनी कलम के माध्यम से लिखना जानते थे। वह उस दौर में गाँधीवादी विचारों एवं क्रांतिकारी व्यक्तित्व के सम्मिश्रण की एक साक्षात जीवित महान प्रतिमूर्ति थे। उनकी पत्रकारिता की निष्पक्षता व निर्भिकता का आलम यह था कि उन्होंने कभी भी जीवनपर्यंत यह नहीं देखा कि वह अपनी कलम के माध्यम से जिसकी आलोचना वे कर रहे हैं, वह किस जाति-धर्म का व्यक्ति है, किस वर्ग का है, वह अमीर है या गरीब है, वह राजा है या रंक है, जमींदार है या पूँजीपति है, बस उनके लिए तो ग़लत कार्य करने वाला व्यक्ति व लोगों पर अन्याय करने वाला व्यक्ति हमेशा दोषी था और वह उस व्यक्ति के खिलाफ खुलकर लिखने से कभी भी झिझकते नहीं थे, वह जीवन भर कभी भी सत्य लिखने से हिचके नहीं।
आज भी देशवासियों के बीच व पत्रकारिता जगत में गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का नाम बेहद सम्मान से लिया जाता है, हालांकि उनका नाम किस विशेष परिप्रेक्ष्य में लिया जाता है, यह हम लोग अब धीरे-धीरे ना जाने क्यों भूलते जा रहे हैं। अपनी कलम को आम जनमानस के दु:ख दर्द की आवाज बना लेना और सत्य को सत्य लिखने के लिए हमेशा ही बहुत साहस की आवश्यकता होती है, यह सभी देशवासियों को समझना होगा। आज महामानव गणेश शंकर ‘विधार्थी’ की पुण्यतिथि पर हमें संकल्प लेना होगा कि देश व समाज हित में ईमानदारी से ओतप्रोत निष्पक्ष, निर्भीक पत्रकार व पत्रकारिता को सुरक्षा, संरक्षित व सरंक्षण प्रदान करना होगा, क्योंकि आज अगर देशभक्त भारतवासियों ने निष्पक्ष व ईमानदार पत्रकारों के साथ खड़ा रहने में गुरेज किया तो देश में वह दिन दूर नहीं है, जब देश में वास्तविक पत्रकारिता केवल और केवल चर्चाओं के लिए किताबों में ही बची रहेगी, धरातल से पूर्ण रूप से विलुप्त हो जायेगी। यही हम लोगों की तरफ से महान पत्रकार गणेश शंकर ‘विधार्थी’ को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
मनीष कुमार त्यागी,
समाजसेवी व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,
श्री सिद्धिविनायक फाॅउंडेशन (SSVF)