पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ब्रह्मलीन
99 वर्ष की आयु में हुए ब्रह्मलीन
सनातन धर्म, देश और समाज के लिए किया अतुल्य योगदान
हृदयगति के रुक जाने से अपराह्न 3.21 पर हुए ब्रह्मलीन
करोडों भक्तों की जुडी हुई है आस्था
स्वतन्त्रता सेनानी, रामसेतु रक्षक, गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करवाने वाले तथा रामजन्मभूमि के लिए लम्बा संघर्ष करने वाले, गौरक्षा आन्दोलन के प्रथम सत्याग्रही, रामराज्य परिषद् के प्रथम अध्यक्ष, पाखण्डवाद के प्रबल विरोधी रहे थे।
ज्योतिष और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का आज मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर धाम में निधन हो गया। उन्होने झोतेश्वर धाम परिसर में स्थित अपने आश्रम में अपरान्ह अंतिम सांस ली। वे अपने जीवन के 99 साल पूरे कर चुके थे। अंतिम समय में शंकराचार्य के अनुयायी और शिष्य उनके समीप थे।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितम्बर 1924 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में हुआ था। बनारस में उन्होंने, स्वामी करपात्री से, वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए।
उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी। वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। 1950 में वे दंडी संन्यासी बने और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।
उक्त सूचना पूज्यपाद ब्रह्मीभूत शंकराचार्य के तीनों प्रमुख शिष्यों स्वामी सदानन्द सरस्वती, स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती एवं ब्रह्मचारी सुबुद्धानन्द द्वारा दी गयी है।