नैनी, प्रयागराज। अखिल भारतीय संत समिति एवं गंगा महासभा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने रविवार को प्रयागराज के अरैल क्षेत्र में नवनिर्मित भगवतेश्वर मंदिर में प्रथम पूजन कर मन्दिर का लोकार्पण किया। इससे पूर्व स्थानीय जनता एवं श्रद्धालुओं द्वारा स्वामी जीतेन्द्रानन्द जी महाराज का अरैल क्षेत्र में भव्य स्वागत किया गया।
धार्मिक अनुष्ठान के उपरान्त मीडिया कर्मियों से वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि सन् 1991 का पूजास्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम अन्याय पूर्ण है। जो कि हिन्दूओं के संवैधानिक उपचारों के मौलिक अधिकार का हनन करता है। सैंकड़ों वर्षों से चले आ रहे विवादों का यदि समाधान नहीं होगा तो हिन्दू समाज में आक्रोश बढ़ता जायेगा। इसलिए सरकार इस क़ानून को रद्द करे। इस अधिनियम के कारण हम अपने आस्था के केंद्र धार्मिक व पौराणिक मन्दिरों मे पूजा अर्चना करने से वंचित हैं। यह हिन्दूओं के लिए अत्यंत पीड़ादायक स्थिति है जो हमें स्वीकार्य नहीं है।
ज्ञानवापी विवाद पर संगम नगरी प्रयागराज के संतों के साथ विचार विमर्श करते हुए अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि भारत के संविधान में संतों की पूरी आस्था है। ज्ञानवापी विवाद की सुनवाई अदालत में चल रही है और अदालत की सुनवाई और फैसले पर साधु-संतों को पूर्ण विश्वास है। स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि जिस तरह से जमीयत उलेमा-ए- हिंद ने देवबंद में राष्ट्रीय बैठक बुलाकर सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और जिला कोर्ट तक को केस की सुनवाई करने पर धमकाया है, यह साधु संत कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
जमीयत उलेमा-ए- हिंद को लेकर उन्होंने कहा कि एक सेकुलर राष्ट्र में यह कैसे संभव है कि मुसलमानों के खिलाफ कोई भी केस अगर संविधान के तहत चलाया जाता है, तो उसका विरोध होने लगता है। उन्होंने कहा कि चाहे वह बुर्का का केस हो, तीन तलाक का केस हो या फिर हलाला का केस हो, इन सभी मामलों में जिन जजों ने सुनवाई की उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा देनी पड़ी। किसी भी मुस्लिम संगठन की धमकी हिंदू समाज कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।
ज्ञानवापी का फैसला अदालत से ही होगा।
उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मामले की सुनवाई अदालत में चलती रहेगी और कोर्ट के बाहर चाहे पीएफआई हो, एसडीएफआई हो या फिर जमीयत उलेमा-ए- हिंद हो या ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड हो या एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ही क्यों ना हों। अगर इनकी नियति नहीं बदली तो जून माह में संत समाज की दो गंभीर बैठकें होंगी। स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में तकरीबन साढे तीन सौ संत आते हैं। जो 11 और 12 जून को इस मुद्दे को लेकर हरिद्वार में पहली बैठक करेंगे।
अखिल भारतीय संत समिति की दूसरी बैठक 25 और 26 जून को हरियाणा के पाटौदी में होगी। जिसमें सभी प्रदेश अध्यक्षों और राष्ट्रीय नेतृत्व को बुलाया गया है। बैठक में शंकराचार्य और आचार्य भी बैठेंगे।उन्होंने कहा कि संत बैठक में यह तय करेंगे कि ऐसी धमकियों से देश नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि दिल्ली के बाहर से आने वाली सड़कों पर पचास हजार या एक लाख लोगों को लेकर बैठ जाइए और 130 से 135 करोड़ के देश के लोगों को बंधक बना लीजिए, धमकियाँ दीजिए और शाहीन बाग बना कर बैठ जाइए।यह रवैया अस्वीकार्य है। ऐसी धमकियों से देश नहीं चलेगा।
हिन्दू राष्ट्र की माँग को लेकर पूछे गये सवाल पर स्वामी जी ने कहा कि यह माँग डा० अम्बेदकर द्वारा बनाये गये संविधान के विपरीत है।
अखिल भारतीय सन्त समिति के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी जी का स्थानीय सन्तों ने शंखध्वनि के साथ पुष्पवर्षा से स्वागत किया। जिसमें प्रमुख रुप से संत फलाहारी बाबा, लालबाबा, अवधेशानन्द महाराज के साथ ही गंगा महासभा के प्रदेश महासचिव देवेन्द्र तिवारी, जिलाध्यक्ष भगवती प्रसाद पाण्डेय, महासचिव संगठन गजेन्द्र सिंह, संजय पाण्डेय, रणविजय सिंह, सुनील पाण्डेय आदि शामिल रहे।