Tuesday, April 16, 2024
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पत्रकार भी सरकारों की राजनीति का शिकार होता रहेगा?

खबर में : ….तो क्या सिर्फ़ पत्रकारों की मौत मात्र पर सामाजिक संवेदनाएं बटोरने के लिए ही परिजनों को चेक बांटने की राजनीति की जाती रहेगी….

गाजीपुर। सरकारें जैसे चलती रहीं हैं वैसे ही चलना इनकी नियती है। ज़मीनी धरातल पर जब फेल होने लगती हैं तो सिस्टम को दोष देकर पल्ला झाड़ने लगती है। सिस्टम ऐसा कि इसे अपने “आंकाओं” को खुश करने के अलावा जैसे कोई काम ही न हो। इसके लिए फाइल में आख्या लगा दिया जाता है। आमजन को सरकार से संविधान द्वारा प्रदत्त पानी,बिजली,स्वास्थ्य और शिक्षा के अलावा अभिव्यक्ति की आजादी ही चाहती है यदि वह भी न मिले तो लानत है ऐसी सरकार को। ऐसे रहनुमा को ।

सरकारें पत्रकारों के स्वास्थ्य को लेकर दावे तो बहुत करतीं हैं,लेकिन जब पत्रकारों पर आफत आती है तो सरकारी दावों की पोल खुलती नज़र आती है।गाजीपुर जनपद की दो घटनाओं को देखने से तो यही लगता है। गत 28 जुलाई को गाजीपुर पत्रकार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष गुलाब राय की मौत चिकित्सीय लापरवाही में जान चली गयी थी जिसमें तीन छोटे कर्माचारियों पर मुकदमा दायर कर म इतिश्री कर दिया गया। इधर देवां (दुल्लहपुर)निवासी आज हिन्दी दैनिक के जनपद मऊ में बतौर ब्यूरोचीफ पद पर नियुक्त वरिष्ठ मान्यता प्राप्त पत्रकार ऋषिकेश पाण्डेय की व्यथा भी कुछ ऐसी ही है।

सम्बंधित खबर यह है : गुलाब राय हमें माफ कीजिएगा

कोविड की सेकेंड डोज के दो दिन बाद उनकी बिगङी तबीयत ने उन्हें मौत के राह पर धकेल दिया।इस बीच चिकनपाक्स चेचक बङी माता ने अपनी आगोश में लेकर उन्हें सीधे मौत के मुंह में ही धकेल दिया।सूचना के बावजूद मऊ जिला अस्पताल प्रशासन ने उन्हें समुचित चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के बजाय इलाज के लिए भर्ती करने से ही इंकार कर दिया।सीएमएस डाक्टर बृज कुमार ने तो यहाँ तक कह डाला कि चिकनपाक्स की कहीं कोई जांच ही नहीं होती।न देश में कहीं कोई चिकनपाक्स का मरीज ही है।गंभीर स्थिति में पत्रकार ने तमाम निजी चिकित्सकों के यहाँ अपनी जान बचाने की गरज से चौदह दिनों तक संघर्ष किया।यह खबर सोशल मीडिया पर आज वायरल होने के बाद स्वास्थ्य विभाग की एक टीम ने पीङित पत्रकार के घर जाकर हालचाल जाना और शासन को अपनी रिपोर्ट प्रेषित की।सबसे बङा सवाल यह उठता है कि पत्रकारों के लिए अनुमन्य सुविधाएं अगर गंभीरावस्था में उन्हें मुहैया नहीं करायी जाएँगी तो क्या सिर्फ़ पत्रकारों की मौत मात्र पर सामाजिक संवेदनाएं बटोरने के लिए ही परिजनों को चेक बांटने की राजनीति की जाती रहेगी और समाज को नयी दिशा देने वाला पत्रकार भी सरकारों की राजनीति का शिकार होता रहेगा?

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