काशी हिंदू विश्वविद्यालय में राजशेखर सूरी कृत प्रबंध कोष के हिंदी अनुवाद का हुआ लोकार्पण।


काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में महामहिम राज्यपाल असम राज्य माननीय श्री लक्ष्मण प्रसाद आचार्य जी की गौरवपूर्ण उपस्थिति हुई। लोकार्पित पुस्तक जैन विद्वान राजशेखर सूरी कृत प्रबंधकोष का 672 वर्षों के उपरांत सर्वप्रथम हिंदी भाषा में अनुवाद किया गया है। इससे पूर्व इस ग्रंथ का कोई भी अंग्रेजी अथवा हिंदी अनुवाद उपलब्ध नहीं था। यह ग्रंथ प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास के कई ऐतिहासिक तथ्यों को प्रकट करती है। कार्यक्रम का प्रारंभ राष्ट्रगान तथा दीप प्रज्वलन से हुआ। कुलगीत के उपरांत अतिथियों का स्वागत विश्वविद्यालय की छात्रा पल्लवी जैन, साधना पांडे, गरिमा तथा अन्य द्वारा किया गया। तत्पश्चात मौसीकी गायक समूह के विद्यार्थियों ने कुलगीत प्रस्तुत किया। विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर घनश्याम ने राज्यपाल महोदय को अंग वस्त्रम तथा प्रोफेसर प्रवेश भारद्वाज व शोधार्थी सुनील यादव ने स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया। प्रोफेसर ताबीर कलम व प्रोफेसर मालविका रंजन ने विशिष्ट अतिथि पूर्व संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर आर पी पाठक जी का स्वागत किया एवं प्रोफेसर आशुतोष कुमार व प्रोफेसर अनुराधा ने वर्तमान संकाय प्रमुख प्रोफेसर अशोक उपाध्याय का स्वागत किया।
संकाय प्रमुख प्रोफेसर अशोक उपाध्याय ने स्वागत भाषण दिया तथा हर्ष अभिव्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा के जगत के विकास के लिए कार्यपालिका के समर्पित प्रयासों की आवश्यकता है तथा महामहिम राज्यपाल की उपस्थिति इस भावना को पुष्ट करती है। प्रोफेसर भारद्वाज ने ग्रंथ का परिचय देते हुए बताया कि इस ग्रंथ के अनुवाद हेतु पाली प्रकृति तथा संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया गया। यह ग्रंथ 1349 ईस्वी में दिल्ली में लिखा गया था। यह ग्रंथ तुगलक शासन के अधीनस्थ भारत का ऐतिहासिक परिचय देता है. इस ग्रंथ के अनुवाद से इतिहासकारों को प्रमाणिक स्त्रोत की प्राप्ति होगी जिससे शोध की परिधि का विस्तार होगा।  राजशेखर ने मध्यकालीन इतिहास लेखन की परंपरा को तोड़ते हुए इतिहास ग्रंथ को दरबारी राजनीति से मुक्त किया तथा लुप्त होती भारतीय ऐतिहासिक लेखन की परंपरा को पुनर्स्थापित किया। प्रोफेसर भारद्वाज ने बताया राजशेखर के इतिहास लेखन का अनुशीलन करके दीनदयाल उपाध्याय जी ने शंकराचार्य पर ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की थी। यह ग्रंथ बताता है कि गुजरात के चालुक्य वंश ने काशी विश्वनाथ मंदिर तथा गंगा तीर्थ के निर्माण में 6 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी थी जो भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। इस ग्रंथ द्वारा राजशेखर सूर्य ने भारतीय ज्ञान परंपरा को अक्षुण्ण रखने का प्रयास किया. प्रोफेसर आरपी पाठक ने बताया कि भारतीय दर्शन इतिहास तथा चिंतन को अलग-अलग देखना भारतीय ज्ञान परंपरा के साथ न्याय नहीं है। धर्मशास्त्र नीति शास्त्र व अर्थशास्त्र को एक में समाहित करना भारतीय ज्ञान परंपरा की पहचान है। भारत में धर्म तथा लोक कल्याण को अलग नहीं देखा जाता तथा धर्म मात्र पूजा पद्धति नहीं है। लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को पश्चिम से बहुत पहले कौटिल्य के अर्थशास्त्र में व्याख्यायित किया गया है तथा आधुनिक काल में पं दीन दयाल जी का अंत्योदय व एकात्म मानववाद का विचार ही इस प्राचीन परंपरा का अनुशीलन करता है। समाज कल्याण के लिए भारतीय दर्शन चिंतन परंपरा का अध्ययन आज भी प्रासंगिक है। महामहिम राज्यपाल ने ग्रंथ का लोकार्पण किया तथा अपने अभिभाषण में कहा कि ज्ञान और अभ्यास का अंतर ही प्रत्येक सामाजिक समस्या का मूल है और प्रबंध कोष इसे ही अपने उपदेशात्मक इतिहास का केंद्र बनाता है। प्रबंध कोष भारत की सांस्कृतिक विरासत की पुनर्प्राप्ति का प्रयास है। शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण करना है। वर्तमान शिक्षा सूचनाओं का ज्ञान करती है जबकि उसका लक्ष्य वास्तविक ज्ञान के द्वारा मानव चरित्र का निर्माण होना चाहिए। इस संदर्भ में विद्वानों द्वारा प्रयास किया जाना आवश्यक है तथा प्रोफेसर भारद्वाज का ग्रंथ इस दिशा में एक अनूठी पहल है। लक्ष्मण आचार्य जी ने काशी व असम की सांस्कृतिक एकता से लोगों को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि यह कल भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का कल है तथा भारतीय संस्कृति अयोध्या से आबू धाबी तक अपने प्रभाव का विस्तार कर रही है। विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर घनश्याम ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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