एक सच और, ताजमहल का सच लेकर उपस्थित चित्रपट प्राचीन भारत का गर्व तेजोमहालय : आचार्य संजय तिवारी
ताज मंदिर। तेजोमहालय। अब फिल्म भी आ गई। ट्रेलर गजब का है।
तेजोमहालय का निर्माण महाराजा जय सिंह प्रथम के समय में हुआ था। यह विराट शिवालय भारत की शान हुआ करता था। इस तेजोमहालय पर कब्जे और इसके अधिपत्य को लेकर मुगलो ने अनेक बार आक्रमण किये जिनके उल्लेख कोई वामपंथी इतिहासकार नहीं करता। जिस शाहजहाँ द्वारा इसके निर्माण की कथा गढ़ी गयी है वह कितनी झूठी है , इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुमताज बेगम उसकी ग्यारहवीं पत्नी थी और उससे चौदहवे संतान के जन्म के समय उसकी मृत्यु बुरहानपुर नमक स्थान पर हुई। यह बेवकूफी नहीं तो क्या है कि मुमताज के मरने की तिथि के छह माह बाद उसे यहाँ ताजमहल में दफ़नाने की कथा रच दी गयी। आज भी ताज की गुंम्बद से गर्भगृह में टपकने वाली पानी की बूँद के बारे में किसी इतिहासकार के पास कोई तर्क नहीं है। यह बूँद वह टपकती है जहा भगवान् शिव के विग्रह विराजमान था। भारतीय कामगारों ने इसे इस रूप में बनाया था कि भगवान् का जलाभिषेक होता रहे। यह वायु और तप के संघनन की प्रणाली से बना है। प्राचीन भारत के इस गौरव को जिस तरह शाहजहाँ जैसे ऐयाश बादशाह की निशानी बता दिया गया ,यह भारत और सनातन परंपरा के लिए ही शर्म जैसा है।
दुःख तो इस बात पर होता है कि देश के स्वाधीन होने के बाद भी हमारी सरकारों ने कभी यह कोशिश नहीं की कि अपनी गौरवमयी ऐतिहासिक गाथाओ को अपनी नयी पीढ़ी तक पहुंचाया जाय। जो मुसलमान दरबारी कवी और अंग्रेज लिख कर मर गए उसी तथ्य को भारत का इतिहास बना कर पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाता रहा।
जैसा कि पर्यटकों को बताया जाता है – ताज महल शाहजहां की बनाई हुई एक मजार है,हालांकि सच्चाई यह है कि ताज महल ‘तेजो महालय’ नामक एक शिव मंदिर है जिसको पांचवी पीढ़ी के मुगल शासक शाहजहां ने जयपुर नरेश से बलपूर्वक छीन लिया था. इस कारण ताज महल को एक मंदिर स्थापत्य माना जाना चाहिए न कि एक मजार. इस में काफ़ी गहरा अंतर है.
आप ताज महल को थोपी गई कहानी के आधार पर सिर्फ एक मजार के रूप में देखकर उसके कद, उसकी भव्यता, विशालता और उसके सौंदर्य की बारीकियों पर गौर नहीं कर सकते. लेकिन जब आपको यह कहा जाता है कि आप एक मंदिर को देखने जा रहे हो तब आप उसके गलियारों, संरक्षक दिवारों को जो अब ध्वस्त हो चुकी हैं, टेकड़ियों, खंदकों, पगथियों, फव्वारों, सुंदर बगीचों, सैकड़ों कमरों, कमान वाले बरामदों, अट्टालिकाओं, बहुमंजिली मीनारों, गुप्त और बंद किए हुए कक्षों, अतिथी कक्षों, अस्तबल, गुम्बद पर जड़े गए त्रिशूल और गर्भगृह की बाह्य दिवारों पर गोदे गए ‘ॐ‘ के चिन्ह को जिनकी जगह अब मजारों ने ले ली है, अनदेखा नहीं कर सकते.
नाम
1. ताज महल नाम का उल्लेख औरंगजेब के काल तक किसी भी मुगल दरबारी दस्तावेजों, वृत्तांतों या ऐतिहासिक घटनाक्रमों में कहीं नहीं मिलता. इसलिए इसे ‘ताज-इ-महल’ कहने की कोशिश बहुत ही हास्यास्पद है.
2. ताज महल का अंतिम पद ‘महल’ इस्लामिक है ही नहीं बल्कि संस्कृत भाषा के शब्द ‘महालय’ का अपभ्रंश है. क्योंकि अफ़गानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी इस्लामिक देश में ‘महल’ नामक कोई इमारत दिखाई नहीं पड़ती.
3. यह कहना कि इस इमारत का नाम ताज महल इस में दफ़नाई गई मुमताज़ महल के नाम पर पड़ा, कम से कम दो बातों में असंगत है. पहली बात, उसका नाम मुमताज महल नहीं बल्कि मुमताज़-उल्-ज़मानी था और दूसरी यह कि उसके नाम के प्रथम दो अक्षर ‘मुम्’ उड़ा कर शेष दो अक्षरों से इमारत का नाम रखना समझ में नहीं आता.
4. फ़िर भी यदि मुमताज़ में आए ‘ताज़’ पर ही इमारत का नाम होता, तो वह ‘ताज़ महल’ होना चाहिए न कि ‘ताज महल’.
5. शाहजहां के समय के कुछ यूरोपीय पर्यटक, इस स्थापत्य को ताज-ए-महल कह कर संबोधित करते हैं जो कि वास्तव में परंपरा के अनुरूप है क्योंकि युगों पुराना संस्कृत नाम ‘तेजो महालय’ इसे शिव मंदिर ही घोषित करता है. शाहजहां और औरंगजेब ने प्रामाणिकता से संस्कृत नाम का प्रयोग टाला है और उसे मात्र पवित्र कब्र ही बताया है.
6. मजार का अर्थ भव्य इमारत नहीं बल्कि उस के अंदर बनी कब्र को ही जानना चाहिए. इस से लोगों को अनुभूति होगी कि सभी मृत मुस्लिम दरबारियों और राजसी लोगों जैसे हुमायूं, अकबर, मुमताज़, एतमाद्-उद्-दौला, सफ़दरजंग इत्यादि मुसलमान बादशाहों को हिन्दू भवनों और मंदिरों को ही बलात् हस्तगत कर के दफ़नाया गया है.
7. यदि ताज कोई दफ़नाने की जगह होती तो उसके साथ ‘महल’ अर्थात् ‘आलय’ जैसा नाम क्यों लगाया जाएगा?
8. जब ताज महल मुगल दरबारों में कहीं परिभाषित हुआ मिलता ही नहीं, तब उसके लिए किसी भी मुगल खुलासे को खोजना व्यर्थ ही होगा. इस के दोनों पदों- ‘ताज’ और ‘महल’ का मूल संस्कृत में ही है.
मंदिर परंपराएं
9. ताज महल शब्द, शिव मंदिर के वाचक संस्कृत शब्द ‘तेजो महालय’ का बिगड़ा हुआ रूप है. आगरा के स्वामी- अग्रेश्वर महादेव – यहां प्रतिष्ठित किए गए थे.
10. ताज महल में संगमरमरी चबूतरे पर चढ़ने से पहले जूते-चप्पल इत्यादि उतारे जाने की परंपरा बहुत प्राचीन है, जो कि शाहजहां से भी बहुत पूर्व, जब कि ताज महल एक शिवालय था तब से चली आ रही है. यदि ताज एक मक़बरा ही होता, तो वहां जूते आदि उतारने की आवश्यकता ही नहीं थी बल्कि दफ़न भूमि में तो अनिवार्य रूप से जूतेचप्पल पहने जाते हैं.
11. पर्यटक यह देख सकते हैं कि संगमरमरी तहखाने में बनी कब्र की आधारशिला सफ़ेद रंग की बिलकुल सादी है, जब कि उसकी ऊपरी मंजिल और अन्य दो मंजिलों पर बनी तीन कब्रों पर बेल-बूटों की नक्काशी की गई है. इससे पता चलता है कि शिव लिंग का संगमरमरी तल अब भी वहां मौजूद है और मुमताज़ की कब्र मात्र एक छलावा है.
12. संगमरमरी ज़ाली की ऊपरी किनारी पर उकेरी गई कलशों की झालर और ज़ाली में जड़े कलश – सभी मिलाकर कुल संख्या 108 है, जो कि हिन्दू मंदिर परंपराओं की एक पवित्र संख्या है.
13. ताज की मरम्मत और रख-रखाव से जुड़े कई व्यक्तियों द्वारा प्राचीन पवित्र शिव लिंग और अन्य मूर्तियों को मोटी दिवारों, गुप्त कक्षों और संगमरमरी तहखाने के नीचे बनी लाल पत्थरों की मंजिलों में बंद पड़ा देखा गया है. भारतीय पुरातत्व विभाग भी इस बारे में अपनी जिम्मेदारी टाल चुका है. पुरातत्व विभाग कूटनीतिक चालाकी, छद्म नम्रता से और दूरी बनाए रखते हुए अभी तक अप्राप्त ऐतिहासिक दस्तावेजों का अनुसंधान करने के अपने दायित्व से मुकर रहा है.
14. भारतवर्ष में बारह ज्योर्तिलिंग हैं अर्थात बारह मुख्य शिव लिंग हैं. जिन में से एक तेजो महालय अर्थात् तथा-कथित ताज महल है. क्योंकि इस के दिवारों की मुंड़ेर पर नाग की आकृतियां लिपटी हुई हैं, इसलिए लगता है कि यह मंदिर नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था. शाहजहां के हथियाने के बाद से यह मंदिर अपनी हिन्दू महत्ता खो बैठा है.
15. वास्तु विद्या पर प्रसिद्ध हिन्दू ग्रन्थ विश्वकर्मा वास्तु शास्त्र में उल्लिखित विविध प्रकार के शिव लिंगों में एक तेज लिंग भी है. जो कि हिन्दुओं के आराध्य देव शिव जी का चिन्ह है. ऐसा ही एक तेज लिंग, ताज महल में स्थापित था, इसलिए यह तथा-कथित ताज महल ही तेजो महालय है.
16. ताज महल जहां स्थित है वह आगरा शहर, प्राचीन काल से ही शिव पूजा का केन्द्र रहा है. यहां की धर्मनिष्ठ जनता प्राचीन काल से ही विशेषतः श्रावण मास में रात्री के भोजन से पहले पांच शिव मंदिरों में पूजा करने की परंपरा को निभाती आ रही थी, लेकिन पिछले कुछ सौ सालों से आगरा के निवासी केवल चार प्रमुख शिव मंदिरों – बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राज-राजेश्वर के दर्शनों में ही सन्तोष प्राप्त कर रहे हैं. क्योंकि उनके पूर्वजों द्वारा पूजित पांचवे मंदिर का देवता उनसे छिन गया है. स्पष्ट है कि अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही यह पांचवे देवता हैं जो तेजो महालय अर्थात तथा-कथित ताज महल में विराजमान थे.
17. आगरा क्षेत्र में जाटों का वर्चस्व रहा है, वे लोग शिव भगवान को ‘तेजा जी’ कहते हैं. इलस्ट्रेटेड़ वीकली ऑफ़ इण्ड़िया के जाट विशेषांक (28 जून,1971) में ज़िक्र है कि जाटों के ‘तेज मन्दिर’ होते थे. इसलिए शिव लिंग के विविध नामों में से एक नाम तेज लिंग भी है. इससे पता चलता है कि ताज महल ही तेज महालय अर्थात् – तेज (शिव) का महान आलय (आवास) है.
दस्तावेजीय प्रमाण
18. स्वंय शाहजहां के दरबारी अभिलेख बादशाहनामा (पृष्ठ 403, खंड1) में कहा गया है कि मुमताज़ को दफ़नाने के लिए जयपुर नरेश महाराजा जयसिंह से एक अपूर्व वैभवशाली गुम्बदयुक्त भव्य प्रासाद (इमारत-ए-आलीशान वा गुम्बजे) लिया गया. जो कि राजा मानसिंह के महल के नाम से विख्यात था.
19. ताज के बाहर लगे पुरातत्वीय फ़लक के अनुसार, ताज महल एक मकबरा है. जिसका निर्माण शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज़ महल के लिए सन् 1631 से सन् 1653 तक सततबाईस वर्षों तक करवाया. यह फ़लक अपने आप में ऐतिहासिक घपले का एक नमूना है.
पहला, इस फ़लक पर किए गए दावे का कोई आधार नहीं बताया गया.
दूसरा, यह कि उस महिला का नाम मुमताज़-उल्-ज़मानी था, न कि मुमताज़ महल.
और तीसरा, यह जो बाईस वर्ष का काल दिया गया है वह किसी मुस्लिम इतिहास से नहीं बल्कि एक किसी ऐरे-गैरे फ्रेंच प्रवासी टैवर्नियर की ऊलज़लूल टिप्पणियों से लिया गया है.
20. औरंगज़ेब द्वारा अपने पिता शाहजहां को लिखित पत्र, कम से कम तीन इतिवृत्तों – ‘आदाब-ए-आलमगिरी, यादगारनामा और मुरक्का-ई-अकबराबादी (सईद अहमद संपादित, आगरा,1931, पृष्ठ 43, पादटिप्पणी 2) में पाया जाता है. सन्1652 के लिखे इस पत्र में औरंगजेब ने स्वंय कहा है कि – मुमताज़ की काल्पनिक दफ़न भूमि के परिसर की कई सात मंजिला इमारतें इतनी पुरानी हो गई थीं कि उन में से पानी रिसने लगा था और गुम्बद के उत्तरी भाग में दरार पड़ गई थी. अतः औरंगजेब ने तत्काल अपने खर्चे से इन इमारतों की मरम्मत का आदेश दिया और शाहजहां को बाद में इसकी विस्तार से मरम्मत करवाने की सलाह दी. इससे सिद्ध होता है कि शाहजहां के शासन काल में ही ताज महल परिसर इतना पुराना हो गया था कि उसकी तत्काल मरम्मत करवानी पड़ी.
21. जयपुर के एक पूर्व महाराजा के पास, उनके निजी संग्रह ‘कपड़ द्वारा’ में ताज भवन समूह की मांग करने वाले शाहजहां के दो लिखित हुक्म, तारीख़-दिसंबर 18,1633 (जिनके आधुनिक क्रमांक 176 और 177 हैं) रखे हुए हैं. उस स्थापत्य का हथियाया जाना इतना स्पष्ट था कि इससे उस समय के जयपुर के महाराजा को यह दस्तावेज जनता के सामने रखने में शर्म महसूस होती थी.
22. राजस्थान के बीकानेर स्थित अभिलेखागार में शाहजहां द्वारा जयपुर नरेश जयसिंह को संबोधित अन्य तीन फ़रमान (आदेश) रखे हुए हैं. उस में शाहजहां ने जयसिंह को मकराना की खानों से संगमरमर और उसे काटने और गढ़ने वाले संगतराशों को भेजने का आदेश दिया है.
स्वाभाविक रूप से जयसिंह ताज महल को कपट पूर्वक हथिया लेने से इतना क्रोधित था कि उसने ताज महल में हिंदू अंशों को नष्ट कर, कुरान की आयतों को जोड़ने के लिए और बनावटी कब्र बनाकर उसे और अधिक भ्रष्ट करने के लिए संगमरमर और संगतराश देने से मना कर दिया. शाहजहां की इस संगमरमर और संगतराश देने की मांग को जयसिंह ने जले पर नमक के समान समझा.अतः उसने और संगमरमर देने से मना तो किया ही परन्तु कोई संगतराश वहां पहुंच न जाए इसलिए उन्हें अपनी हिरासत में भी रखा.
23. मुमताज़ की मृत्यु के दो वर्ष के भीतर ही शाहजहां ने राजा जयसिंह को संगमरमर की मांग करनेवाले तीन आदेश भेजे. यदि शाहजहां ने सच में बाईस वर्षों तक ताज महल का निर्माण करवाया होता, तो संगमरमर की आवश्यकता 15 या 20 वर्षों के बाद पड़ती, न कि मुमताज की मृत्यु के तुरंत बाद.
24. इतना ही नहीं, इन तीनों पत्रों में कहीं भी न ताज महल, न मुमताज़ और न ही उसे दफ़नाने का कोई उल्लेख है. उसकी लागत तथा पत्थर की मात्रा का भी कोई उल्लेख नहीं है. इससे पता चलता है कि केवल कुछ जोड़ने के काम के लिए और कुछ हेर-फ़ेर करने के लिए संगमरमर की मामूली मात्रा ही चाहिए थी.
25. टैवर्नियर नामक एक फ्रेंच जौहरी ने अपने यात्रा संस्मरणों में यह लिखा है कि शाहजहां ने जान-बूझकर मुमताज़ को ताज-इ-मकान (ताज की इमारत) के निकट दफ़नाया. क्योंकि वहां विदेशी पर्यटक आया करते थे – जैसा कि आज भी आते हैं, ताकि संपूर्ण विश्व के लोग उसे देखें और उसकी प्रशंसा करें. उसने यह भी लिखा है कि ताज की संपूर्ण लागत की अपेक्षा मचान बनाने का खर्च अधिक था. तेजो महालय शिव मंदिर में जिस काम का आदेश शाहजहां द्वारा दिया गया था, वह था – बहुमूल्य मूर्तियों, सामानों और संपत्ति की लूट-पाट करना, शिव प्रतिमाओं को उखाड़ फेंकना और उसकी जगह दो मंजिलों पर कब्रें जड़ना, उनकी कमानों में कुरान की आयतें खुदवाना और ताज की सात में से छः मंजिलों को दीवार चिनवा कर बंद करवाना आदि. यही लूट और मंदिर को अपवित्र करने का काम ताज के कक्षों में चल रहा था, जिस में बाईस वर्ष लग गए
26. पीटर मंड़ी नामक एक अंग्रेज प्रवासी सन् 1632 में (मुमताज़ की मृत्यु के एक वर्ष के भीतर ही) आगरा आया था. उसने आगरा और उसके आस-पास के दर्शनीय स्थलों में ताज-ए-महल की कब्र, बगीचों और बाजारों का जिक्र किया है. अतः उस की इस बात ने इसकी पुष्टी की है कि ताज महल शाहजहां से पूर्व ही एक उल्लेखनीय इमारत थी.
27. एक ड़च अधिकारी दि लायट ने उल्लेख किया है कि शाहजहां से पूर्व ही आगरा किले से एक मील की दूरी पर एक भव्य मानसिंह महल नामक इमारत विद्यमान थी. शाहजहां के दरबारी रोजनामचे बादशाहनामा में इसी मानसिंह महल में मुमताज़ को दफ़नाने का जिक्र किया गया है.
28. तत्कालीन फ्रेंच पर्यटक बर्नियर ने लिखा है कि मानसिंह महल शाहजहां द्वारा हथिया लेने के बाद से उसके तहखाने में किसी भी गैर-मुस्लिम के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई. वह तहखाना प्रकाश से चकाचौंध रहा करता था. स्पष्ट है कि उसका इशारा चांदी के द्वारों, सोने के जंगलों, रत्न जड़ीत झिलमिल जालियों, शिव मूर्ति पर लटकने वाली मोती की लड़ियों इत्यादि की तरफ था. शाहजहां ने मुमताज़ की मृत्यु का आसान बहाना बनाकर छल से इस सारी संपत्ति को हड़प लिया था.
29. जाॅन अल्बर्ट मण्ड़ेलस्लो ने सन् 1638 (मुमताज़ की मृत्यु के सात वर्ष पश्चात्) के अपने प्रवास के दौरान आगरा के जीवन का विस्तार से वर्णन किया है. उसने यह वर्णन ‘Voyages and Travels to West Indies’ – जाॅन स्तार्कि और जाॅन बेस्सेट लंदन द्वारा प्रकाशित निजी पर्यटन संस्मरणों में किया है. परन्तु उस में ताज के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं है. जबकि सामान्यतः ऐसा माना जाता है और जोर देकर बताया भी जाता है कि सन् 1631- सन् 1653 के बीच ताज का निर्माण कार्य चला.
30. एक संस्कृत शिलालेख भी इसकी साक्ष्य देता है कि ताज मूलतः एक शिवालय ही था. इसे बटेश्वर शिलालेख के नाम से पुकारा गया है -जो कि गलत है. वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ संग्रहालय की ऊपरी मंजिल में सुरक्षित है. इस पर संकेत है कि “एक स्फटिक जैसे शुभ्र शिव मंदिर का निर्माण हुआ जो इतना मनोहर था कि उस में निवास करने पर भगवान शिव की वापस कैलाश लौटने की इच्छा ही नहीं रही.” सन् 1155 ईसवी का यह शिलालेख शाहजहां के आदेश पर ताज के बगीचे से हटा लिया गया था. इतिहासकारों और पुरातत्व विदों ने इसे‘बटेश्वर शिलालेख’ कहने की भारी भूल की है, जबकि प्रमाण के अनुसार यह शिलालेख बटेश्वर में पाया ही नहीं गया था. इस शिलालेख को असल में ‘तेजो महालय शिलालेख’ कहा जाना ही उचित है क्योंकि यह मूलतः ताज के बगीचे में स्थापित था – जिसे वहां से उखाड़ फेंकने का काम शाहजहां के आदेश पर हुआ.
आर्किओलोजिकल सर्वे आफ़ इण्ड़िया के वार्षिक वृत्तांत (प्रकाशित 1874), खंड़ 4, पृष्ठ 216-217, पर शाहजहां द्वारा की गई ताज की तोड़-फोड़ का पता चलता है. इस में लिखा है कि, “भव्य चौकोनी काला बैलेस्टिक स्तंभ तथा उसके साथ का ही दूसरा स्तंभ, उसके शिखर तथा चबूतरे सहित …..जो कि अब आगरा की जमीन में खड़ा है
कभी ताज महल के उद्यान में स्थापित थे.”
लुप्त गज प्रतिमाएं
31. ताज निर्माण की बात तो दूर रही, बल्कि काले अक्षरों में कुरान की आयतें ऊपर से लिखवा कर शाहजहां ने ताज का सौंदर्य नष्ट करने का काम किया. साथ ही संस्कृत शिलालेखों, नाना प्रकार की मूर्तियों और दो भव्य गज प्रतिमाओं को बेतरह लूटने का काम भी शाहजहां ने किया. जहां आजकल पर्यटक प्रवेश टिकीट
खरीदते हैं वहां प्रवेश द्वार के स्वागत करने वाले तोरणों के नोक पर इन गज प्रतिमाओं की सूंड़े जुड़ी हुई थीं.
थाॅमस ट्विनिंग की पुस्तक “Travels in India A Hundred Years Ago” के पृष्ठ 191पर लिखा है कि नवम्बर 1794 में -” मैं ताज-ए-महल और उसके आस-पास की इमारतों के प्रांगण में पालकी से उतरा……….और कुछ छोटी-छोटी पैड़ियां चढ़ते हुए उस भव्य प्रवेश द्वार पर पहुंचा, जो “हाथी चौक” की इस दिशा के बीच में था, जैसा कि उस स्थान को कहा जाता था.”
कुरान की पैबन्द पट्टियां
32. ताज महल पर कुरान के चौदह अध्याय जड़े हुए हैं परन्तु इस ऊपरीलेखन में कहीं भी शाहजहां के ताज का निर्माण कर्ता होने का हल्का सा भी जिक्र नहीं है. यदि शाहजहां ताज का बनानेवाला होता, तो इस बात का उल्लेख वह कुरान की आयतें जड़वाने से पहले ही करता.
33. शाहजहां ने ताज महल का निर्माण करने की बजाए काले अक्षरों से आयतें लिखवाकर, उसे मलिन कर दिया. ताज के बाहर लगे शिलालेख में अंकित है कि अमानत ख़ान शिराज़ी द्वारा यह आयतें लिखी गई हैं. इन आयतों के सूक्ष्म निरीक्षण से पता चलता है कि वे रंग-बिरंगे पत्थर के टुकड़ों से पैबंद की तरह प्राचीन शिव मंदिर पर जड़ी गई हैं.
कार्बन 14 जांच
34. यमुना किनारे वाले ताज के द्वार से लकड़ी का एक टुकड़ा लेकर अमेरिकन प्रयोगशाला में कार्बन 14 जांच के लिए भेजा गया था. इस जांच में वह टुकड़ा शाहजहां से 300 वर्ष पूर्व का पाया गया. क्योंकि 11वीं शताब्दी से ही विभिन्न मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा ताज के द्वार तोड़े जाते रहे, इसलिए समय-समय पर उनका पुनर्निर्माण भी होता रहा. तथापि, ताज की इमारत इससे भी प्राचीन सन्1155 ईसवी की है – अर्थात् शाहजहां से भी 500 वर्ष पूर्व बनी हुई इमारत है – ताज.
स्थापत्य के साक्ष्य
35. पश्चिमी जगत् के प्रख्यात वास्तुविद् ई.बी. हवेल, मिसेस केनोयर और सर ड़ब्ल्यू. ड़ब्ल्यू. हण्टर के अनुसार ताज महल हिंदू मंदिर की शैली से बनाया गया है. हवेल कहते हैं कि ताज की रूप रेखा, जावा के प्राचीन हिंदू चण्ड़ी सेवा मंदिर की रूप रेखा से मिलती-जुलती है.
36. चार कोनों पर चार छत्र और बीच में गुम्बद यह हिंदू मंदिरों का सर्व व्यापी वैशिष्ट्य है.
37. ताज महल के चार कोनों पर खड़े चार संगमरमरी स्तंभ हिंदू शैली के प्रतीक हैं. वे रात्री में प्रकाश स्तंभ का काम देते थे और दिन में पहरेदारों द्वारा निगरानी के काम में लाए जाते थे. इस तरह के स्तंभ पूजास्थल के चारों ओर की सीमाएं निर्धारित करने के लिए लगाए जाते हैं. आज भी ऐसे स्तंभ हिंदू विवाह वेदी और सत्यनारायण भगवान की पूजा इत्यादि में लगाए जाते हैं.
38. ताज महल का आकार अष्टकोणी है जो कि हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. क्योंकि एकमात्र हिंदुओं में ही आठों दिशाओं का विशिष्ट नामकरण किया गया है और प्रत्येक दिशा का अपना एक दैवी पालक नियुक्त किया गया है. ऐसा माना गया है कि किसी वास्तु का शिखर आकाश का संकेत करता है और नींव पाताल को सूचित करती है. बहुधा हिंदू किले, नगर, राजप्रासाद और मंदिर इत्यादि के निर्माण का खाका अष्टकोणी होता है या उस में कुछ अष्टकोणी आकार या आकृति रखी जाती है. ताकि उस में शिखर और नींव मिलाकर सभी दस दिशाएं समाहित हो जाएं. हिंदू मान्यता है कि राजा या परमात्मा का स्वामित्व दसों दिशाओं में होता है.
39. ताज के गुम्बद की चोटी पर त्रिशूल खड़ा है. त्रिशूल के मध्य दण्ड़ की नोक पर दो झुके हुए आम के पत्तों और नारियल सहित एक कलश दर्शाया गया है. यह विशुद्ध हिंदू कल्पना है. हिमालय क्षेत्र में बने हिंदू और बौध्द मंदिरों के शिखर ऐसे ही होते हैं. ताज के लाल पत्थरों से बने पूर्वी आंगन में भी एक पूर्ण आकार का त्रिशूल वाला कलश जड़ा हुआ है. ताज की चार दिशाओं में बने भव्य संगमरमरी मेहराबदार प्रवेशद्वारों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठ भूमि में त्रिशूल दर्शाए गए हैं. लोग बड़े चाव से किन्तु गलत अवधारणा पर इतनी सारी शताब्दियों से यह मान बैठे हैं कि ताज के शिखर पर इस्लामिक अर्धचंद्र या दूज का चांद दिखाया गया है और उसके ऊपर जो तारा दिखाया गया है, वह जब भारतवर्ष में अंग्रेज शासक आए थे, तब उन्होंने आकाशीय बिजली गिरते समय बचाव के लिए विद्युत वाहक के तौर पर स्थापित किया था. परन्तु इस से विपरीत ताज का शिखर हिंदू धातुशास्त्र का एक चमत्कार है. वह ऐसी धातुओं के मिश्रण से निर्मित है जिस को कभी जंग नहीं लगता और साथ ही जो गिरती हुई बिजली का निरसन करने में भी सहायक होता है.पूर्व दिशा क्योंकि सूर्योदय की दिशा है इसलिए यह दिशा हिंदुओं के लिए विशिष्ट महत्व रखती है और इसलिए ताज के पूर्वी आंगन में जड़ी त्रिशूल वाले कलश की प्रतिकृति हिंदू दृष्टि से महत्वपूर्ण है. ताज के गुम्बद पर जड़े त्रिशूल वाले कलश पर ‘अल्लाह’ खुदा हुआ है जो कि ताज को हड़पे जाने के बाद की निशानी है. लेकिन ताज महल के पूर्वी आंगन में जड़ी त्रिशूल वाली पूर्णाकृति पर ‘अल्लाह’ नाम नहीं है.
40. संगमरमरी ताज की पूर्व और पश्चिम दिशाओं में दो भवन खड़े हैं- जो कि आकार, परिमाण और प्रारूप में बिलकुल एक जैसे हैं. फ़िर भी पूर्व भवन को सामुदायिक भवन बताया जाता है जब कि पश्चिमी भवन मस्जिद कहलाती है. मूलतः बिलकुल भिन्न प्रयोजन के लिए बनाए गए दो भवन, एक जैसे कैसे हो सकते हैं? इससे पता चलता है कि शाहजहां द्वारा ताज को हड़पने के बाद से ही पश्चिमी भवन को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया था. आश्चर्य की बात है कि इस पश्चिमी भवन वाली मस्जिद में एक भी मिनार नहीं है. वास्तव में दोनों भवन – तेजो महालय मंदिर के स्वागत भवन थे.
41. उस तरफ़ कुछ ही गज़ की दूरी पर एक नक्कार खाना भी है- जो कि इस्लाम में एक अक्षम्य असंगति है. नक्कार खाने का इतना निकट होना इस बात का संकेत है कि पश्चिमी भवन असल में मस्जिद थी ही नहीं. इसके विपरीत, नक्कार खाने का होना – हिंदू मंदिरों और महलों का विशेष लक्षण है, क्योंकि हिंदुओं के दैनिक जीवन में प्रातः-सायं कार्यों का प्रारंभ आवश्यक रूप से सुमधुर संगीत से होता है. 42. कब्र के बाहरी कक्ष की संगमरमरी दिवारों पर ‘शंख’ और ‘ॐ’ की आकृतियां उकेरी गई हैं. कब्र के अंदरुनी कक्ष में मौजूद अष्टकोणी संगमरमरी जाली के शीर्ष किनारों पर भी गुलाबी कमल दर्शाए गए हैं. शंख, ॐ और कमल आदि -हिन्दू देवताओं और मंदिरों से जुड़े पवित्र चिन्ह हैं.
43. आज जहां मुमताज़ की कब्र है, वहां कभी हिंदुओं के आराध्य देव शिव जी का प्रतिक चिन्ह ‘तेज लिंग’ स्थापित था. ‘तेज लिंग’ के चारों ओर प्रदक्षिणा करने के पांच मार्ग थे. संगमरमरी जाली के चारों ओर से, फ़िर कब्र वाले कक्ष के चारों ओर बने विस्तीर्ण संगमरमरी गलियारों से और संगमरमरी चबूतरे पर बाहर से भी परिक्रमा की जा सकती थी. परिक्रमा करते समय ‘देवता’ के दर्शन होते रहें, इसलिए हिंदुओं में झरोखे रखने की परंपरा रही है, ताज में मौजूद परिक्रमा मार्गों में भी ऐसे झरोखे बने हुए हैं.
44. ताज के गर्भ-गृह में चांदी के द्वार, सोने के जंगले और रत्न तथा मोती जड़ित संगमरमरी जालीयां लगी हुई थीं, जैसी की हिंदू मंदिरों में होती हैं. यह इस सारी धन-संपदा का प्रलोभन ही था – जिसके लिए शाहजहां ने अपने अधिनस्थ उस समय के असहाय जयपुर नरेश जयसिंह से ताज को छीन लिया था.
45. पीटर मंड़ी नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि सन् 1632 में (मुमताज़ की मृत्यु के एक वर्ष के भीतर ही) – उसने मुमताज़ की कब्र के चारों ओर रत्नजड़ित सुवर्ण जंगले लगे हुए देखे थे. यदि ताज के निर्माण में बाईस वर्ष लगे होते, तो पीटर मंड़ी द्वारा मुमताज़ की मृत्यु के एक वर्ष के भीतर ही यह बहुमूल्य रत्नजड़ित सुवर्ण जंगले नहीं देखे गए होते. क्योंकि ऐसे बहुमूल्य सामान इमारत का निर्माण पूरा होने पर ही लगाए जाते हैं. इससे प
